मेरा दामन बहोत साफ है ,
कोई तोहमत लगा दिजिए ....
कि
बहोत शराफत कर ली हमने ...
ऐसा करें, आप हमें वाहियात कह लिजिए ....-
कीमत तो साहब दोनों को चुकानी पड़ती है।
बोलने की भी और चुप रहने की भी !!-
जी में आये वो करो
मत करो
हिफाज़त क़ायनात की
सोच लेंगे बात हमने
वाहियात की
क़हर बरपाए हवा पानी
हिल पड़े या ज़मीं
मरना तो है ही क्यों करें
हम फिक्र घात की
ज़िन्दगी से कर लिया जब
बैर हमने
न सरोकार फिर सुबह से
न बात रात की-
वाकिफ जो होना हो मुझसे तो मेरी रूह तक पहुंचना पड़ेगा
यूँ दूर से तो में जाहिल वाहियात ही लगता हूँ-
🤯
अपने गुज़रे हुए कल को🧐
ऐसे भी जिये थे हम कभी 😄
मुस्कुराए, ठहर इक पल को 😅-
क्या लिखूँ....
मैं दिवस लिखूं चाहे रात लिखूं ,जब भी मैं लिखूं
बस वही लिखूं,सीधे मन के जज्बात लिखूं
मैं लिखना शुरू अब करताहूं,सबसे पहले प्रणिपात लिखूं
किसी बात से तेरा दिल ना दुखे,बस खैरखबर कुशलात लिखूं
मैं भूल ना तुमको पाया हूं,आंखों के अश्रुपात लिखूं
यह मुझको भी तो पसंद नहीं,क्यों तुम्हें कोई वाहियात लिखूं
पहले तो करूँगा सावधान,ऐसा नहीं कि अकस्मात लिखूं
मैं छोटी सोच नहीं रखता,इसलिए नई,बड़ी बात लिखूं अफवाह से दूर रहता हूं सदा,मैं करके तहकीकात लिखूं टुकड़ों में बताना ठीक नहीं,मैं पूरी ही वारदात लिखूं
मैं झूठी खबर नहीं रखता,पूरा कर मालूमात लिखूं
तुमहो शराब,शोला,शबनम,क्या तुम्हें लिखूं,क्या नहीं लिखूं
मैं दिवस लिखूं चाहे रात लिखूं-
शहर में एक अजीब पागलपन छाया है,
सुनने मेरा मुशायरा देखो बेहरा भी आया है।
मैं कोई महंगा शायर महंगाई में मेहंगे शेर पढ़ता हूं,
रुपया उसने खरच दिया, जिसने अठन्नी कमाया है।
हमनें सोचा हम हीं पागल एक बचे इस शहर में,
निज़ामत के सदके जनाब, पूरी जमात को बुलाया है।
ये मिट्टी को लेकर है मसले बहुत,
तो मट्टी डालो अलफाज़ो पर,
खयालों का मज़ार तो हमनें हवा में बनाया है।-
कब तक झेलोगी तुम ? मेरी ये वाहियात शायरी ।
मुझको इस काम से तुम आजाद क्यूं नहीं कर देती।।-