मैं नहीं चाहता कि मैं ऐसे जाऊं जैसे जाता है ,
गहरी नींद में सोता हुआ कोई हृदय अघात से,
मैं चाहता हूं मैं जाऊं मंथर गति से उस डूबते तारे की तरह
तकी तुम ताको कि यहीं कहीं छिप गया होगा कहीं बदलो की ओट में , अभी कभी चमक उठेगा कही उत्तर पूर्व में किसी ध्रुवतारे की तरह-
ये ऋतुएं , बहारें,
हवा और ये मौसम,
ये आते हैं जाते हैं ,
तन को सताते हैं ,
दिल को रुलातें हैं,
मन गुदगुदाते हैं ,
यादों की कश्ती को,
भँवर में चलाते हैं ।
मन की मुरादों से,
यादों से, वादों से,
कविता के बंधन से,
गानों की तानों से,
अरमानों की बस्ती से,
यादों की कश्ती से,
एक दिन बहारें
गुज़र जाएंगी ,
हवाएं फिजा में
बिखर जाएंगी।
ये ऋतुएं ये मौसम,
तो फिर आयेंगे ,
बहारें भी मन को भरमाएंगे ,
मगर ये यादों के बक्से बस ,
यादों में रह जायेंगे।।-
तुझसे बिछड़े तो फिर किसको बताएंगे ये रंज-ओ-ग़म ।
तुझसे मिलके ही तो हम हमारे भी न रहे ।।
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मैं उतरा था भवर में डूबने के ख्वाहिश में ,
ये दरिया साहिलों पे छोड़ दे तो और बात है।।
मैं चाहकर भी तेरी हस्ती से मुख़्तलिफ़ हो नही सकता,
तू मुझको चीर कर अलग छोड़ दे तो और बात है।।
कहीं कुछ ख्वाहिशें कुछ अधमरी उम्मीदें हैं दफ्न होने को,
तू खुद लौटकर के इस ग़ज़ल को गुनगुनाएं तो और बात है।।
लो मैंने छोड़ दिया माज़ी को अब उसके मुकद्दर पे,
मगर ये गीत मेरे साथ तू भी गुनगुनाएं तो और बात है।।-
गज़लें यें टूटा दिल जोड़े! या हमसाया हो तन्हाई में,
चारासाजी का फन हो इनमें, फिर तो कोई कहानी है,
वरना ये लफ्ज़ों का फन बेमानी था बेमानी है।।
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दिलो-दीवार पे, जिस पे एक तस्वीर टिका रखी थी,
मुद्दतों से बस वही कील बची है अब तो।।-
देखो झूठ की दरिया, कैसे मचलती है,
आगे पीछे इसके ,एक दुनिया चलती है,
देखो कितने बड़े बड़े भूखंड इसी से सिंचित है,
और भूखों के भोजन का स्रोत यही , किंचित है,
बहो! इसी के साथ अधर तर जाओगे ,
अपना चाहा किला फतह कर जाओगे,
सुनो! कूप से कुंठित ही रह जाओगे ,
सच का साथ धरा तो खूंटे से बध जाओगे,
जो जो यहां फिज़ा में ज़हर मिला पाएगा,
मरते को पानी देकर , राज चलाएगा ।।-
हो रही हैं पूनम की आभाएं ओझल,
हवाओं शमां जलाओ कोई ।।
मंजिलें तो रास्तों की गरज हैं,
मुझे रास्तों तक ले आओ कोई।।
है तन्हा तन्हा सा क़िरदार अपना ,
अफसाना इसका बनाओ कोई ।।
इस दिल शाखें जो मुरझा गई,
उसके परिंदों को कहीं बसाओ कोई।।
ये बेरूखी है या भूल बैठे हैं वो,
उन्हें बेसुधी से जगाओ कोई ।।
की अपने भीतर क्या क्या है टूटा,
इस रूठे मन को मनाओ कोई।।
ये गुमशुम सा है किसका चेहरा ,
इस आइने को हसाओ कोई ।।
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आरजू थी बस कुछ लम्हात की तुझसे,
अफसोस ! ये बात भी ज़ुबान पर आ गई।।-
क्या बतलाएं ये दिल कैसे संभालें हैं,
जबान जल रही है दिलों पे छाले हैं ।
मुद्दतों आरजू रही जिस दर पे जाने की,
वहां पहुंचे तो उस दर तालें हैं ।।-