मेरा बचपन मेरा गावँ
( अनुशीर्षक में पढ़ें )-
अपने जज्बातों को छुपा ना पाते थे,
सच्चे थे इसलिए सबके सामने रो जाते थे,
जिद्द कर बात को अपनी, बना लिया करते थे
पिता के कंधे पर, तो माँ की गोद मे सो लिया करते थे,
बोझ के नाम पर बस्ता था, उठा कर चल दिया करते थे,
मद-मस्त हँसते थे, मस्ती में झूम लिया करते थे,
गली-गली, हर घर-घर अपना, समझ लिया करते थे,
बच्चे थे साहब, सबको अपना कर लिया करते थे।
M.J.-
मेरा गाँव मेरे बचपन की कहानियां याद दिलाती हैं
जब घर से निकलते ही बारिश नज़र आती हैं
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मेरा बचपन बड़ा ही अनोखा, मां के हिए का मैं खिलौना।।
दादी की लाठी,मां की प्यारी लोरी, मुखड़ा मेरा श्याम सलोना।।
पापा की आंखों का तारा,,भईया की मैं नटखट बहना राजदुलारी,
पापा की शहजादी परियों सी,अठखेलियां कच्ची कैरियों सी प्यारी।
चौखट की मैं अल्पना,,वर्षों की मैं कल्पना कहते पापा मेरे,,
कतरनी से जुबान मेरी, काटे दुख संताप सारे कहते पापा मेरे।
चंचल, निर्मल,श्वेत,निश्चल पावन मेरा मन, शांति से बड़ी ही दूर,
नादानियां,शैतानियां, किलकारियां, सबके चेहरे का मैं नूर ।।
"शशि" सी चमकती मेरे घर की देहरी,चंदन सा महकता आंगन,
हजार खुशियां दामन में लिए,,खिलखिलाता हुआ बचपन मेरा।।-
ऐ बचपन, तू तो ख़ामोशी से निकल गई,
कब मुस्काई थी, कब मुरझा कर चली गई।
सच बता, क्या अब भी तू मुझमें ज़िंदा है,
या चंद रोज़ ठहरने वाला एक आज़ाद परिंदा है।
वक़्त के साथ तू उड़ चली फ़ासलों के पार,
ना चाहते हुए भी, तेरा ख़याल आता है बारम्बार।
ऐसा नहीं कि तेरा हर कतरा मिट चुका है मुझमें,
तुझे जीने की तलब अब भी है ,कहीं मेरे वजूद में।
बच्चों जैसी शोख़ियाँ अब छोड़ दे, तू बड़ी हो चली है,
मेरे बड़े होने पर ऐ बचपन, बता क्या तू मर गयी है।
— % &तुझे आज भी महसूस करती हूँ अपने ज़ीस्त के हर रंग में,
तेरी परछाई में ही रची-बसी हूँ, तेरे हर तरंग में।
तेरी मुस्कान का नक़्शा अब भी दिल की ज़ीनत है,
तेरी भोली-भाली सूरत अब भी एक हकीकत है।
कभी बेफिक्र हँसी में तेरा अक्स झलकता है,
कभी तन्हा लम्हों में तेरा साया अपना लगता है।
तू अनकही हसरतों का कोई ख़याल बनकर,
अब भी मुझमें बसी है गुमां बनकर।
— % &-
वो दादी -नानी की कहानी वाले दौर गए
शक्तिमान और कृष्णलीला वाले रविवार के दौर गए
दवात कलम और तख्ती वाले दौर गए
बेर और आम तलाशने वाले बच्चों के वो दौर गए
सर्कस में आते हाथी -भालू के करतब भी कहीं ओर गए
पतंगबाजी और सावन के झूले लगता कहीं ओर गए
ग्रीटिंग कार्ड और चोर-पुलिस की पर्ची वाले दौर गए
मोबाइल खा गया बचपन को अब
हमारे बचपन वाले दौर गए😥-
वो नटखटपन , वो अबोध शैतानियां
वो दादी अम्मा की रहस्यमयी कहानियां ...
गुल्ली डंडा , भौरा , पिट्टूल हमारे साथी
खेले जो हम सांप-सीढ़ी , लूडो और बाटी ...
वो बगीचे से आम चुराना , मालिक देख
दौड़ लगाना
वो दोस्तो से मिलकर , जामुन , बेर तोड़ लाना ...
ना मोबाइल , ना वीडियो गेम का था वो जमाना
सच्ची खुशी तो बस , दोस्तो के बीच था पाना ...
खूब घूमना , जी भर खेलना , जैसे था
अनोखा लड़कपन
पर सच मे जैसा भी था , बेहतरीन पल था ,
मेरा बचपन ....
#कृष्णा ☺-
||मेरा बचपन ||
मैंने बिताया मेरा बचपन खुशी के बागों में ,
सदा खिलते फूल थे मेरी
बातों में ,
तितलियाँ खेलती मेरी आंखों के
सामने ,
मेरे दौडते, गिरते, उठते साथ
रहते साथी मेरे,
सदा खिलाती मुझे रोटी, चाँद दिखाते
मैया मेरी,
सदा दिलाते नये खिलौना खेलने
पिता मेरे,
सदा माफ करते गलतियों को नये
मार्ग दिखाते गुरु मेरे,
सदा पेड़ चढ़ता फल चुराने के लिए साथ निभाए मित्र मेरे,
सदा सैकल चलायी ठोकर खाते
साथ निभाने साथ रहते छाया मेरे,
सदा बातेें करते रहे अकेले में
अपने आप में,
सदा झूठ बोलने से सच का पालन करें तो भी नहीं मानते थे अपनो ने,
सदा जिद्द से ही काम कर्वाना जानते थे बचपन में मेैने,
सदा झगडता रहा कुछ पाने वस्तु मेरे लिए मैेने,
कैसे बीता पता नहीं चला मेरे बचपन |-