कोई कुछ तो फर्क़ बता जाये अब ...
कि हिन्दू-मुसलमाँ पर मुझें भी लिखना है !!-
विचारों के आदान प्रदान
से ही हम बहुत लोगों के
व्यक्तिव के बारे में जान
पाते है, और समस्या
कितनी भी जटिल क्यों न
हो, हल भी निकल ही आता है,
पर बहस करना किसी समस्या
का हल नहीं हो सकता...-
कोई आँखो से बात कर लेता हैं
कोई आँखो ही आँखो मे मुलाकात कर लेता हैं
बड़ा मुश्किल होता हैं जवाब देना
जब कोई खामोश रह कर सवाल कर देता हैं।।।-
जहाँ मकसद खुद को ही सही साबित करना होता है लोग बहस बाजी करतें हैं;
जहाँ मकसद सही बात को जानना होता है तो वहां लोग विचार विमर्श करते हैं।
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वैसे तो बहस किसी से भी करना बेकार है। मगर दो तरह के लोगों से बहस करने से हमेशा बचना चाहिए - 1. बद्तमीज और 2. बेवकूफ। एक इज्जत नीलाम करते हैं और दूसरा टाइम ख़राब करते हैं। फिर भी, मैटर नहीं सुलझाते।
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खुद से बहस करोगे तो सारे सवालों के जवाब मिल जाएंगे अगर दुसरो से करोगे तो और नये सवाल खड़े हो जायेंगे...
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