जिस तरह ज़िन्दगी आराम से नहीं
काम से चलती है,
उसी तरह आजकल रिश्ते भी
प्यार से नहीं
formality से चलते हैं,
Think🤔-
हमको वो भाव तक ना देती हैं
गैरों के जितना भी..
हम परेशान हो जाते हैं ,
उसको चुपचाप देख ।
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वो मेरा फॉर्मेलिटी में पूछना कि कैसे हो?
वो उसका झूठ बोल जाना की ठीक हूं.....-
अक्सर लोग मरने से पहले ही मर जाया करते हैं।
खुदखुशी तो बस एक फॉर्मेलिटी है।
इस जहां को छोड़ने की।
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रिश्तेदार
मैं पूछती हूँ खुद से पर समझ नहीं पाती,
आखिर कौन होते हैं ये रिश्तेदार...?
वो जो हर जगह फॉर्मेलिटी निभाते हैं,
या वो जो रिश्ते दिल से निभाते हैं।
वो जो आपकी तरक्की से प्रसन्न होते हैं,
या वो जो आपकी तरक्की से जल उठते हैं।
वो जो आपकी तकलीफ में काम आते हैं,
या वो जो आपकी तकलीफ में नज़रें चुराते हैं।
वो जिनके पास आपसे मिलने का वक़्त नहीं होता,
या वो जो मिलने के लिए वक़्त की परवाह नहीं करते।
वो जो आपको जन्म से खून के रिश्तों में मिलते हैं,
या वो जो अचानक बिना रिश्तों के आपसे बंध जाते हैं।
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