लो आजमा लो ए हमनशीं पहले भी तो आजमाया था।
माना पर्दे में थी तुम हमनें भी आंखो से पर्दा कब हटाया था।-
पर्दा तो शर्म का ही काफी है
वरना इशारे तो घूंघट में भी होते हैं
🖤🚦-
एक तेरा साथ वो सकुन दें जाता था
अब ज़माने भर की छांव धुप से बचा नहीं पाती
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पर्दा
पर्दा ,ये सिर्फ नाम नहीं सम्मान है पुरुषो का।
कैसे मैं बताती हूं।
जब नन्ही सी बच्ची अपने पूरे बदन को ढकने
वाले कपड़े पहने ,
तब उस पर्दे से बरकरार रहता पिता का गुरूर और अभिमान ।
जब एक बहन सूट सलवार और दुपट्टा में
निकले घर से तब उस
पर्दे से कायम रहता है भाई शान।
जब एक औरत घुंघट लंबी रखे
तब उस पर्दे से मिलता है
ससुराल वालों को प्रतिष्ठा और मान।
ये पुरुष अपने घर के स्त्रियों के पर्दे में रहने को अपना अभिमान शान और मान कहते हैं,
और दूसरे घरों की स्त्रियों के लिए यही पुरुष
पर्दे के पीछे रहने का कारण बनते हैं।
तो हटाओ स्त्रियां पर्दे अब
कब तक कपड़े का सहारा लोगी ,
पुरुषों से डरकर तुम कब तक पाबंदियों में कैद रहोगी
अब अपनी शक्ति दुनिया को दिखाओ
दुर्गा ,काली सब निहित है तुममें
दुष्टो के नाश के लिए अपनी शक्ति को आजमा
और नियत जिसकी नीच हो
नाम उसका तुम मिट्टी में मिलाओ।-
भ्रम
तुम क्या सोचती हो
कपड़े पहनकर तुम
अपने तन को छुपा लेती हो,
ये भ्रम है तुम्हारा, दूर करो इसे
मैं कपड़ों के ऊपर से ही,
तुम्हारे चरित्र का रामायण लिख देता हूँ।
मैं तुम्हारे शरीर की बनावट से ही
उसका नाप तैयार कर लेता हूँ।
तुम क्या सोचती हो..
मेरी आँखें सब कुछ देखती हैं
जो तुम सोच भी नहीं सकती हो
मेरी आँखें वो सब करती है
जो तुम नहीं चाहती हो
बलात्कार, शोषण, तुम्हें नग्न देखना,
इन आँखों की कल्पना मात्र से ही कर देता हूँ
तुम क्या सोचती हो...
अब तुम्हारे तन को कपड़ा नहीं चाहिए
बस दे दो मुझे कोई शर्म का पर्दा
जो मेरी आँखों को चाहिए
जो मेरी आँखों को चाहिए
तुम क्या सोचती हो
कपड़े पहनकर तुम
अपने तन को छुपा लेती हो,
ये भ्रम है तुम्हारा दूर करो इसे।
_अवनीश
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हजारों परदों में भी अब ,समेटती रहती हूं ख़ुद को,
तेरी आंखों के पर्दों में ,कितनी महफूज़ थी मैं..
Malv..-
आंखों की हया के परदे में छुपा कर बेठी हूँ इश्क़ तेरा!!
एक बार तुम हमसे नजरें तो मिलाओ हर राज समझ जाओगे!!-
अक्सर कुछ लोग दूसरों की कमी
निकालना अपना फर्ज समझते है।
और रही बात कब्र पर मिट्टी डालनी की
लोग उसे तो अपना कर्ज समझते है।-
नज़रें झुका लेने से
भला सादगी का क्या ताल्लुक़
शराफ़त झलकती है
जब पर्दा हो आपकी नीयत में-
हज़ारों परदों की ज़रूरत ही नहीं खुद को समेटने के लिए,
ये झुकी नज़र ही बा-कमाल है तुझे रूह तक महफ़ूज़ रखने को।-