Harsh Mishra   (Harsh (हर्ष))
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Joined 29 August 2020


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Joined 29 August 2020
1 JAN AT 1:24

कोई निशानी बने नए साल में
तो कहानी थोड़ी आगे जाएगी,
अब तक बहुत हुई अब न देर हो,
तो ज़िंदगानी थोड़ी संवर जाएगी।
मेरा उसका सबका भला हो,
जितना संभव उतना मंगल हो,
सभी सुखी हों सभी निरोगी,
नववर्ष कामना शुभ हो जाएगी।।
🎉 Happy New Year to all,
Welcome 2025...!!!✌️🙏

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27 DEC 2024 AT 18:44

किताब सी मिले कोई तो, एक पन्ना मैं पढूंगा,
एक पन्ना उसके हिस्से, और यूं ही मिल कर,
पूरा पढ़ लेंगे उस किताब को,
फिर बार-बार और कई बार,
पढ़-पढ़ कर आत्मसात कर लेंगे,
अपने होंठो पर और नजरों में,
उतार लेंगे उस किताब को।

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4 DEC 2024 AT 21:40

बाहों में भरो और जी भर गले लगाओ,
महका दो अपनी खुशबू से,
अपने रंग में कुछ ऐसा रंग जाओ।।

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29 NOV 2024 AT 17:43

क्या खोया क्या पाया मैंने,
जब सोचा तो देखा मैंने,
गुण भी हैं, कुछ हुनर भी,
कुछ संस्कार मिले विरासत में,
प्रभाव है, कुछ इज्जत भी,
पर दौलत ही कुछ कमतर थी,
बस... यही कमी थी सबसे बड़ी।
फिर क्या था...
जो था वो ना के बराबर,
जो नहीं पास वो सबसे जरूरी,
अब तक पाया वो सब निष्ठुर है,
गुणवान नहीं धनवान जरूरी।।

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26 NOV 2024 AT 20:38

कभी कभी तो लगता है,
धरती पर बोझ बना हुआ हूं..!!
जब खुद को असहाय पाता हूं।

कितनों को लौटा पाया है,
कितनों का अब भी बाकी है,
ना जाने कितना और चलूंगा,
कितना रास्ता और बाकी है।।

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24 NOV 2024 AT 14:05

तुम बोल दो बस
इन गज़लों, शेर और
तरानों की क्या जरूरत,
मिलने की ख्वाहिश करो तो
बहानों की क्या जरूरत है।।

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11 NOV 2024 AT 1:46

जब तक तुमको ना सोचूं
मन सूना सूना रहता है,
जब तक तुमको ना देखूं
दीदार अधूरा रहता है,
जब तक तुमसे ना बोलूं
दिल उखड़ा उखड़ा रहता है,
जब तक तुमको ना चाहूं
यह प्यार अधूरा रहता है,
जब तक तुमको ना प्यार करूं,
तेरा श्रृंगार अधूरा रहता है।।

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24 OCT 2024 AT 1:31

मौन की बात को मन ये सुन ना सका,
उस झुकी नजर को यह पढ़ ना सका,
प्यार की सुगबुगाहट तो थी कपोल पर,
तू छिपा ना सकी मौन कह ना सका।

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1 OCT 2024 AT 21:01

जितना तुझमें मैं बचा हुआ हूं,
उतना तो मुझमें अब मैं भी नहीं,
हृदय में स्पंदन बाकी है पर,
निष्ठुर देह पड़ी निष्काम प्रिये।

तेरा एक स्वर ही काफ़ी मेरे लिए,
तेरी छुअन से आती जान प्रिये,
तूझसे ही होता हूं पूर्ण मैं और,
तुझको पाना है अभिमान प्रिये।।

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24 SEP 2024 AT 23:41

बड़ी मुश्किल से किया काबू, खुला अब छोड़ दूं कैसे,
किसी ओर जाने की फ़िराक में, कहीं उड़ ही ना जाए।

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