"ज़िन्दगी है अज़नबी सी.. अज़ीब सी ज़ुस्तजू है
बस झूठी ख़्वाइशों का इक आईना सा रूबरू है,
बेजान मज़बूरन जैसे कोई साया सा है चल रहा
है जिस्म किसी और का किसी और की रूह है,
ना तारे हैं यह मेरे.. ना चाँद पे मेरा कोई हक है
फिऱ सारा आसमां अपना सा.. यह लगता क्यूँ है,
उफ़्फ़.. ज़िन्दगी है यह अज़नबी सी अज़ीब सी ज़ुस्तजू है!-
उम्र बस यूँ ही.. चली जा रही है
और ख़्वाईशें अब भी.. वोहि पुरानी हैं,
कथाचित्र पे धीरे-धीरे.. पर्दा गिर रहा है
और हमें लगा के.. अभी-अभी तो शुरू हुई कहानी है,
वो कहते हैं.. के ख़ुश रहा करो
यह ग़म-ए-बहार.. तो आनी-जानी है,
अब नदी का क्या.. वो तो बहती रहती है
समुंदर से पूछो.. के कितना पानी है!!-
शहर को पाने गाँव निकले
जाने किस ज़ुस्तज़ु में पाँव निकले,
रिश्तों के शज़र सभी कट गए
अब कहाँ से धूप में छाँव निकले,
मुहब्बत शब-भर का आसमाँ
देखते ही देखते दूर.. चाँद निकले,
जाने हूँ मैं कौन सी दुविधा में
ना जी सकूँ ना जान निकले,
ज़िन्दगी को जीतने की आरजू में
उफ़्फ़.. मेरे सारे उल्टे दाँव निकले!!-
उम्र, एकमुश्त मिला खज़ाना है
कमबख्त, हमें ख़ुद-ब-ख़ुद ही खर्च हो जाना है,
बस यदा-कदा ही, हंसना मुस्कुराना है
पर रोज़ का, रोना-तड़पना-छटपटाना है,
ख्वाब-ओ-ख्वाइशों की कैद में रहकर
बस रोज़ दरवाज़ा... खटखटाना है,
जाने क्यों भटक मैं जाता हूं "जिन्दगी"
तेरा रास्ता तो यह... जाना-पहचाना है,
मरघट देख... मन विशुब्ध हुआ है
सोचूं, क्यों कर...यह घर अपना ही बेगाना है!!-
जब मन उदास हो.. टूटी ड़ोर आकाश हो
फ़िर से पतंग उड़ाने का, क्यूँ ना फ़िर प्रयास हो,
जब तूफ़ां प्रत्यक्ष हो... धुंधला सा लक्ष्य हो
ज़िन्दगी रण है तो रण ही सही... चाहे कुछ भी ना अपने पक्ष हो,
बांध धर्य के जब ढह चलें, अश्रु स्वतः ही बह चलें
दौर यह भी अपना ही है, सब मुस्कुरा के बस सह चलें,
जब ना कोई राह हो..., मुसीबतें अथाह हो
क़दम ख़ुद व ख़ुद ही बढ़ जाएंगे, चलने की बस चाह हो,
किस बात का भय है..., सबका बदलता समय है
जीवन एक अबसर है... औऱ मृत्यु तो सब की तय है!!-
परेशान ना हुआ करो सबकी बातों से
कुछ लोग तो पैदा ही -
बकवास करने के लिए हुए होते है !!-
ग़ैरों में ना अपनों का होना याद आया
पा लेने से अधिक आज खोना याद आया,
यूँ ही अचानक गाड़ियों की भीड़ में आज
बचपन का वो टूटा खिलौना याद आया,
आँसू जो पा ना सके बह के भी मुहब्बत
आज बहुत हँसे... जब वो रोना याद आया,
ना तस्वीरें ना क़भी ग़ोर से दीवारें देखीं
कमबख़्त घर टूटा तो फ़िर... कोनां-कोनां याद आया!!-
ऐ दिल तेरे शौक़े'अज़ीयत से परेशान हो चला हूँ
लाश ढ़ोता आरमनों का कैसा इंसान हो चला हूँ।
इस उम्र-ए-दौरा में भी जीने का सलीका न आया
मेरे ख़ालिक, देख ये सब मैं अब हैरान हो चला हूँ।
ग़मो से लिपट के रोती रहती हैं अक़्सर आंहे मेरी
तज़ादे'पैहम से उलझा ग़मज़दा हैवान हो चला हूँ।
ख़याल-ए-सूद-ओ-जियाँ में उलझी उलझन मेरी
गोया मैं झोलीदा बनिये का सामान हो चला हूँ।
कौन निभाता हैं साथ भला गर्दिश-ए-अय्याम में
तकाज़ा-ए-वक़्त से महरूम वो नदान हो चला हूँ।
तस्बीह कर के चश्म-ए-तर करती रही दुआ मेरी
नालिश करता हुआ मैं कितना अनजान हो चला हूँ।-
जब लोग मेरे quote ki तारीफ करते है
तो मै उन्हें thank you बोलता हूं
फिर वो लोग welcome कहते है
मै उन लोगों से बहुत परेशान हूं
कभी बताते नहीं आना कहा है मुझे 😠-
My Bro : सोज़ा पगली ...
कितनी थक जाती है दिनभर -
लोगो को परेशान करते-करते !!😁-