आओ दलित और सवर्ण का हम परचम लहराते हैं।
पंकज पंक बन उछल रहा, चलो आइटम बन जाते हैं।-
जान थोड़ा करीब तो आओ कि बत्ती गुल है
अब ना बोलो संभल जाओ कि बत्ती गुल है
सुर्ख लबों पर पूरा मयखाना लेकर बैठी हो
ये पैमाने जहर के हमें पिलाओ कि बत्ती गुल है
सिर्फ हाथ पकड़ कर बैठने से रात नहीं गुजरेगी
गले डाल बाहें कमर पकड़ाओ कि बत्ती गुल है
सहेली के किस्से तो ताउम्र सुन लूंगा मैं तुम्हारे
अभी बस मेरी बात समझ जाओ कि बत्ती गुल है
लूडो में कई बाजियां जीती होंगी तुमने कभी
आज बिस्तर पर कोई खेल खिलाओ कि बत्ती गुल है
आज तुम मन की ही करने दो "पंकज" को
आज इधर उधर ना बहलाओ कि बत्ती गुल है
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तेरी खामोशियों की ज़ुबान को भी पढ लेंगे हम ।
गर हो इजाज़त तो होठों से भी बयां कर देंगे हम ।।-
आज फिर इस रात का उस गुलाबी धूप से इज़हार हो
मेरी शायरी में बस उसी का ज़िक्र हो और हर बार हो
तारीफें तो बहुत होती है मगर किसी को मोहब्बत नहीं
वरना सिगरेट पीने की आदत को छोड़ "पंकज" तुम आदमी तो शानदार हो-
बहके बहके से हम हैं जब से नजरें मिली हैं
ये आंखें हैं तेरी या फिर कोई शराब है क्या
शरम से मुस्कुरा के नजरें झुका ली थी तूने
ये इशारों इशारों में तेरा कोई जवाब है क्या
सरकता हुआ दुपट्टा संभाल लिया भीड़ में तूने
ये बोझिल जवानी ढकने का नकाब है क्या
क्या कहा, कोई तुझे "पंकज" से ज्यादा चाहता है
हा हा अरे पगली तेरा दिमाग खराब है क्या-
हर शख्श की गिरहें परत दर परत खोलता बहुत है
कड़वी बातों में व्यंग्य की मिश्री घोलता बहुत है
ढेरों राज छुपाये हुए है कहीं दिल के एक कोने में
मगर लोग यही कहते हैं "पंकज" बोलता बहुत है-
यह विश्वास की बात है कि हम दोनों साथ ना हो सके ।
तुम्हें मुझ पर विश्वास न रहा हमें खुद पर विश्वास न हो सका ।।-
लोग हमें गुस्से से गुर्राते हुए देख रहे हैं
और हम हैं कि बस उसे शरमाते हुए देख रहे हैं
छूने से कहीं बदन की ताजगी ना चली जाए
तो बस दूर से ही उसे खिलते हुए देख रहे हैं
भंवरों की भीड़ में भी एक ही पर इशारे का निशाना
उसको ये हुनर भी हम आजमाते हुए देख रहे हैं
मैं मोहब्बत हूँ उसकी या नहीं,ये वो ही जाने या खुदा
हम तो उसे बस दुनिया के ताने सहते हुए देख रहे हैं
"पंकज" लड़का ठीक नहीं पगली, किसी ने कहा था
कजलायी आंखों से फिर उसके अंगारे निकलते हुए देख रहे हैं
बड़ी जजबातीं है ये लड़की,इजहार नहीं करती
इस बात पे मुझसे ज्यादा उसे आंसूं बहाते हुए देख रहे हैं
जाने कौनसा मनहूस दिन था वो,कि देखना ही था
कि आज उसे नजरें झुकाकर बस में जाते हुए देख रहे हैं-