निंदकों को दंड देने की जरूरत नहीं, वह ख़ुद ही दंडित है। आप चैन से सोइए और वह जलन के कारण सो नहीं पाता।
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जो व्यक्ति अपनी निंदा सह लेता है,
उसने मानो पूरे जगत पे विजय पा ली..!!!-
निंदा की चिंता अच्छे कार्य में नही,
बुरे कार्य मे कीजिये।-
अगर कोई आपकी निंदा करे
तो उस निंदा से घबराओ मत
निंदा उसी की होती है
जो जिंदा है
मरने के बाद तो
सिर्फ तारीफ ही होती है-
कई सिंदूर उजड़ गए , कई माँओं की गोद सूनी होगी ,
आज फिर बयान आएंगे ,फिर कड़े शब्दों में निंदा होगी !
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दूसरों की निंदा में समय खर्च करने वाले वीर नही होते।
बड़े ही कमज़ोर और कायर होते है।
वो कभी भी प्रशंशा के पात्र नहीं होते।
उनको अंत समय केवल जहालत ही हाँसिल होती है।-
सोपान चढ़ता है मृगांक निश दिन
अल्प-अल्प परिवर्तनों से ही सही
कुहू में हो जाता है वह ओझल
परंतु खोता अस्तित्व न कदापि
धवलिमा संग संजोय है दाग भी
उसे निंदाओं से अंतर पड़ता नहीं!-
मै नारी हूं, मैं स्त्री हूं, मैं दर्पण हूं,
नाग में ही गर्जन हूं।
मै बेटी हूं ,मैं माता भी हूं।
सदियों से चलती आई ये रीत,
कभी सीता को अग्नि परीक्षा देना पड़ा,
कभी द्रोपति के वस्त्र हरण किए गए,
कलयुग हो या सतयुग दुखों का घुट नारी को ही पीना पड़ा
क्यों घनी अंधेरी सड़कों पे,
चलने से मेरा मन घबराता है,
मुझे ही तो मारा जाता है जब सफर अकेली करती हूं,
हैं, हेबनियत देखो,
अंधेरी ही राहों में जाने किसने हाथों से बीच लिया,
एक ने मुंह पर हाथ रखा एक ने आंचल खींच लिया,
मानवता को तो सब तार-तार कर डाला।
मैं रोई, में घबराई ,छोड़ दो मुझे ,जाने दो मुझको , वेहशि- दरिंदों ने मेरी जीवा को भी काट डाला।
खून से लथपथ हुई मैं रीड को भी तोड़ डाला।
अरे ओ दरिंदे सर्मक्षार है। दुनिया तुझ पर बहुत अच्छा
तूने भी नारी की कोख से ही जन्म लिया है
क्यों ना आए तुझको अपनी मां की याद।
जो लोग कहते हैं कपड़े छोटे पहनें होंगे ,मेकअप किया होगा, उसके चरित्र पर जो उंगलियां उठाते हो।
तुमने भी तो नारी की कोख से जन्म लिया तुम उसे क्यों नहीं समझ पाते हो।
अपने विचार बदल दो हर नारी सुख से जिएगी।
धन्यवाद
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