QUOTES ON #गरीब_के_बच्चे

#गरीब_के_बच्चे quotes

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2 AUG 2018 AT 22:45

खिलौनों की दुकान देख सर झुका लेता है,

पैसे कम है, ऐसा मन में हिसाब लगा लेता है।।

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29 SEP 2018 AT 8:43

Garibi ne beshaq use uthne na dia
Wo bachhi bhi kisi baap ki shahzadi hai

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24 JUN 2020 AT 9:33

बड़ी बेशर्म होती है ये गरीबी ,
कमबख्त उम्र का भी लिहाज नहीं करती..
harendra_choudhary018

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25 MAY 2018 AT 20:54

पेट की भूख ने जिंदगी के हर एक रंग दिखा दिए ,
सलाम करता हूँ उन फरिश्तों को जिन्होंने
हाथ में कटोरा नहीं , सर पे पत्थर उठा लिए

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29 JUN 2020 AT 14:34


उड़ना चाहता था फ़लक पर,
अपनी किस्मत अपने हाथों लिखना चाहता था।

पर निलाम हुई बचपन हमारी,
चंद सिक्कों की आगोश में।

न जाने क्या मर्जी थी ख़ुदा की,
उम्र खिलौने से खेलने की,
पर थमाई गई हमें छेनी, हथौड़ी।

पेट की आग बुझती नहीं थी पानी से,
खाने को तो माँ देती थी,
पर पेट किसकी यहां भरती थी।

पढ़ी नहीं किताब मैंने कभी,
पर मजबूरी ने मतलब समझाई मजदूरी की।

सपने देखा करता था जो रात की अंधेरों में,
उन्हें पूरा करना चाहता था,
कई ख़्वाब थे मेरे भी,
जिन्हें हक़ीक़त में बदलना चाहता था।





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15 JUN 2019 AT 10:02

नीद का रस्ता बंद है
कब्जा जो इसपर जिम्मेदारियो ने कर लिया है
खाब इज़ाज़त मांग रहे पर
कच्ची उम्र ने बड़ा उन्हे कर दिया है
सोने को छ्त भी कहाँ है
ज़मी पर ही लुढके पड़े हैं
कब नीद आये इस आसमा के नीचे
ज़िम्मेदारिओ से लड़ते वो छोटे बच्चे
अपनी ज़िद पर अड़े हैं

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27 MAR 2019 AT 15:43

आओ मिलकर नया इतिहास रचाएं हम,
बचपन एक्सप्रेस को आगे बढ़ाएं हम ।

एकता होती शक्ति का प्रतीक,
सतत शिक्षा विकास फैलाएं हम।

शहर,गाँव के कोने-कोने से,
बच्चों को मंजिल तक पहुँचाए हम।

नन्हें-मुन्हों की किलकारी गूंजेंगी,
माता-पिता में जागरूकता जगाएं हम।

उज्जवल भविष्य हो मासूमों का,
कलियों से पुष्प खिलाएं हम ।

मंजिल दे खुला आसमाँ परिंदों को,
बुलंद हौसलों की उड़ान भराएं हम।

मंजिल में न आने देंगे काली अमावस की रात,
पूनम के चाँद को आसमाँ से है लाएं हम ।

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1 JUN 2020 AT 19:25

कविता का शीर्षक :- मुस्कान चवन्नी




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27 MAY 2020 AT 16:40

ग़रीबी का एहसास जब दिल में उतर जाता है
गरीब का बच्चा जिद करना भी भूल जाता है

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11 APR 2019 AT 14:00

आये तो हम भी थे उसी रब के दर से
चीखा था तेरे ही जैसे मैने भी
माँ की गोद मे आकर
चमड़ी मेरी भी तो थी तेरे जैसी
फ़र्क़ इतना था कि तू अमीर
घराने का था और मैं गरीब
तू रोशनी मे जीता रहा बिना चोट के
मैं जीता रहा रात के अंधेरे मे
जो व्याप्त था पहले अंधियारा
आज भी कोई बन ना सका उसका उजियारा
कहाँ गुमी है आज भी गरीबी
जब अन्नदाता का ही बेटा भूखा बैठा है बेचारा
तुम सोओ पेटभर के दुधिया उजियारी में
हम बैठे है न भुखे "काली रात की चौखट" पे

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