बचपन की मस्ती
बचपन की उधम-धाड़
वो कागज़ की कश्ती
बारिशों की फ़ुहार
वो गन्ने के रस की धार
घंटी बजा के भागना बार-बार
वो साइकिल....वो झूले
वो बगीचों की बहार
छत पर भाग कर चढ़ना
टीवी एन्टीना ऐंठना बारम्बार
स्कूल था मक्का-मदीना
स्कूल ही था कारागार
नकली ही सही पर खूब दौड़ती थी
अपनी भी बड़ी कार
साथ बैठकर खाता था
जब सारा परिवार
रूठता न था कोई
सभी थे मेरे संबंधी मेरे प्यारे यार
जाने कहाँ रह गया...वो बचपन
वो बचपन का भोला प्यार
- साकेत गर्ग-
मतलबी दुनिया में रिश्ते काँच की तरह तोड़ देते हैं लोग,
यू तो हाथ थामे रहते थे जरूरत पर साथ छोड़ देते हैं लोग।
अब तो शांत रहने की कोशिश रहती है महफ़िलों में,
क्योंकि बातों को बहुत तोड़ मोड़ कर परोस देते हैं लोग।।
सच हमेशा अकेला था आज भी कोई उसके साथ नहीं है,
और झूठ का साथ तो बेझिझक आज भी देते हैं लोग।
खुद में थोड़ा सा बदलाव कर कड़वाहट लाना जरूरी है,
मीठे होने पर तो गन्ने जैसा बुरी तरह निचोड़ देते हैं लोग।।-
दोस्तों मान लो
तुम हमे इतना पहचान लो
हम जीवट वाले बड़े है
गन्ने के तने की तरह
तन कर अकेले खड़े हैं
माना हम में भी गांठें बहुत है
परत दर परत छील लो,
जितना भी तुम चाहो
दो पाटों के बीच चाहे पीस डालो
जूस बना दो, जितना चाहो उबालो
मीठे थे,मीठे है
मीठे ही रहेंगे
किसी का बुरा हम कभी कर ही ना पाएंगे
कहा ना हम जीवट वाले बड़े हैं
गन्ने के तने की तरह तन कर अकेले खड़े है-