Sunita Katyal   (Sunita Katyal)
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Joined 10 August 2018


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Joined 10 August 2018
5 HOURS AGO

कितनी आसानी से भूल जाते है लोग,
अच्छे वक्त,अच्छे लोगों और अच्छी घटनाओं को,
और भुलाए नहीं भूलता,
कोई अपमान हो, दुर्घटना हो या हो कोई असफलता,
किसी ने कुछ बुरा कहा आपको कभी,
या आपके साथ कुछ बुरा किया,
2/ 4 लम्हों की वो घटना दिल में अंकित हो जाती है ऐसे,
जैसे पत्थर पे खोदी गई लकीर कोई,
लील जाती है वो सारी खुशियों को,
आखिरी लम्हों तक डिलीट नहीं होती दिल से।
ऐसे ही एक बुराई सौ अच्छाइयों पर भारी पड़ जाती है,
कितना भी किसी के लिए अच्छा कर लो,
अगर एक काम आपने किया नहीं ,
जिंदगी भर की मेहनत पे आपकी
लोग फेर देते हैं पानी,
कितनी आसानी से भूल जाते हैं उसे,
जैसे रेत पर लिखा गया शब्द कोई,
लहरें आई और सब मिटा गईं।
जिंदगी का कड़वा अनुभव है मेरा ये।
Sunita Katyal

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YESTERDAY AT 10:24

ख्वाबों और हकीकत के बीच,
होता है फासला बहुत बड़ा।
ख्वाहिश यही मैं उड़ती रहूं खुले आकाश में,
हकीकत कहे, पंख तेरे अब जीर्ण शीर्ण हो चुके,
धरती पर ही रह कर सीख,
गिर कर संभलना और फिर चलना!
ख्वाब यही, हो मेरे लिए एक ऐसा जहां,
कानों में गूंजे भजनों की मधुर ध्वनि हरदम,
और न कोई परीक्षाओं की वैतरणी वहां।
हकीकत में दुनिया भर का शोर,
आक्रोश भरा कोचना और शंकित दृष्टि,
मैं ख्वाब और हकीकत दोनों के दरमियान,
कभी उड़ान और कभी ज़मीन पर,
कभी शांत चित्त और कभी अशांति के बीच,
सामंजस्य बिठाते हुए जीवनपथ पर आगे बढ़ रही हूं।
Sunita Katyal

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14 OCT AT 19:11

रोजमर्रा में कहते हैं लोग,
एक दिन का पाहुना, दूसरे दिन मनभावना, तीसरे दिन घिनावना,
पर बरसों बरसों तक हर शाम,
मंजिल मेरी सिर्फ तेरा घर।
जानते थे सब रास्ते में मिलने वाले,
फिर भी पूछते थे "कहां चल दीं"
और एक ही था जवाब हमेशा मेरा,
मुल्ला की दौड़ मस्जिद तक।
नित ही बाट मेरी जोहती थीं तुम,
जरा सी देर हुई नहीं, झट फोन देती थीं घुमा,
तेरे उड़ जाने के बाद..... मां,
मेरे लिए, शाम और उसका इंतजार ,
मायने नहीं रखता कुछ भी,
निर्विकार चेहरे पर बिना किसी प्रतिक्रिया के,
याद करती हूँ हरदम तुझे अब भी,
हर शाम तेरे साथ जो हमारा,
आरती और संध्या वंदन का नित नियम था,
उसको निभाने की कोशिश भी करती हूं!!
Sunita Katyal

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13 OCT AT 13:29

जिंदगी है तो परीक्षा होगी ही
बच नहीं सकते हम और आप ।
जीवन की राह में ऐसे कुछ लोगों से
पड़ता है सबका वास्ता,
जिनको कुछ समझाया नहीं जा सकता,
चाहे अच्छा हो या बुरा,उनसे कुछ भी कहो,
काट देंगे आपकी बात फौरन ही,
सही हो या गलत,
न जाने हर वक्त उनके पास आपकी बात काटने का,
जवाब कैसे तैयार रहता है,
मैं तो यही सोचती हूं,
भगवान इनको सद्बुद्धि दे,
दिमाग इनका सही दिशा में ही रहे,
जीवनपथ का गोखरू कांटा ही होते हैं लोग ऐसे,
अगर इस कांटे की परवाह किए बगैर
बढ़ गए आप आगे,
तो समझ लीजिए पास हो गए परीक्षा में!!
Sunita Katyal

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7 OCT AT 21:44

कितने अनमोल थे लम्हे दिसंबर 1971 के,
मिले थे हम जया भादुरी जी से,
पहली फिल्म गुड्डी ही रिलीज हुई थी उनकी,
पड़ोस में आईं थी हमारे,अपनी रिश्तेदारी में वो,
थे हम तब 12/13 साल के,
परीक्षाओं की वजह से देखी नहीं थी फिल्म उनकी,
बस खुश थे कि इक हीरोइन से मिलने जा रहे,
कुछ कुछ झिझक भरी सी मुलाकात थी,
हमने उनसे कॉपी के एक पन्ने पर ऑटोग्राफ लिए थे,
वो बोली, कुछ दिनों बाद कहीं
फेंक तो नहीं दिए जाएंगे रद्दी की टोकरी में ये,
हमने सकुचाते हुए कहा ,नहीं ऐसा होगा नहीं,
हम से कुछ कुछ बातें कर रहीं थी वो,
छोटे से, अल्हड़ से फैन थे हम उनके जो।
अब सोचते हैं,
उनके बारे में, उनकी अदाकारी के बारे में कुछ नहीं जानते थे हम तब,
अब मिलते उनसे तो हमारे जज्बात,हमारे अहसास कुछ और होते,
जो उस अधूरी मुलाकात को मुकम्मल करते,
हाय ये कुछ अधूरी मुलाकातें,
यादें बन महफूज रहेंगी जिंदगी के आखिरी लम्हों तक,
भुलाए नहीं भूलेंगी जैसे हो अधूरा ख्वाब कोई,
जिसे पूर्ण करना अब संभव नहीं।
Sunita Katyal

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7 OCT AT 13:27

कुछ अनकही बातें परत दर परत दफन,
आज भी जेहन में, बंद सात तालों में,
जब वक्त था बोलने का,
जुबान पर लग गई संस्कारों की बेड़ियां,
जिनसे कहनी थीं,
वो या तो गुम हो गए दुनिया की भीड़ में,
या कुछ जो छोड़ गए इस संसार को ही,
वो बातें आती हैं, याद जब भी हमें,
ठहर जाती हैं कभी ओस की बूंदों सी, पलकों की छांव में,
या धुंध बन छा जाती है दिलोदिमाग पर,
और फिर रात को बड़बड़ाहट बन,
बाधित करती है नींद पतिदेव की।
Sunita Katyal

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4 OCT AT 19:44

जीना, वो भी बिना किसी मुखौटे के,
दुष्कर शायद असंभव भी!
अब इस उम्र में शरीर के नखरे वल्लाह, और ऐसे में कोई पूछे?
बहन जी कैसी हैं आजकल आप?
हम कहें ,स्वस्थ हैं प्रभु कृपा से,
वो भी जानते हैं ये सच नहीं और हम भी,
चला जाता हमसे नहीं, हाड़ सब दुखते हैं,
मोबाइल देखने से हो जाते हैं आँखें और सिर पीड़ित ,
बढ़िया खाना तो इस वय में वैसे भी,
मना सब डॉक्टर बिरादरी की कृपा से,🤦🤦
फिर भी तंदुरुस्ती का मुखौटा पहना हुआ है हमने।
जानते है हम,
अगर अपनी सेहत के मिजाज का,
रोना रो दिया भूलवश कहीं,
तो फिर खैरियत हमारी कोई पूछेगा ही नहीं।😂😂
Sunita Katyal

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3 OCT AT 11:39

बतियाता है पर दिल ही दिल में!
संस्कारी बहुत है ना ये,
जिसे चाहता है उसे बता नहीं सकता,
जिसे नहीं चाहता है,उसे भी कुछ कह नहीं पाता।
बिछुड़ गए कुछ अपने जो,
याद कर उन्हें,होता है जब दुखी ये,
खुद को ही बरगला लेता है,
लफ्जों की जगह, अश्कों से काम चला लेता है तब!
अपने को बांधा है इसने कई बंधनों में,
या तो मुक्त होना नहीं चाहता,
या खुद को छुड़ा पाने में असमर्थ है ये।
रट्टू तोते की तरह रटाती हूं इसे राम नाम,
थोड़ी देर मुझे बहलाता है ये, कहना मेरा मान कर,
फिर वक्त की गलियों में,आगे पीछे
साथ ले मुझे दौड़ लगाता है ,
सच्ची कहूं तो बहुत भटकाता है ,
पर करूं क्या, है तो मेरा अपना ही ये।
Sunita Katyal

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2 OCT AT 16:40

रावण के दस शीश प्रतीक हैं,
बुराइयों और कमजोरियों के,
देते संदेश ये,
नकारात्मक प्रवृत्तियों से कर युद्ध
पानी है विजय हमें!
काम , क्रोध, लोभ, मोह, इन्हें जलाओ,
मद, ईर्ष्या, घृणा,अहंकार, भय, और झूठ सब मिटाओ!
दस शीशों का अर्थ यही बतलाता,
हर दोष मनुष्य को गिराता!
अहंकार चाहे कितना भी हो बड़ा,
सत्य के आगे उसे झुकना ही पड़ा !
विजयादशमी यही पुकार सुनाए,
धर्म का दीपक जग में जगमगाए!
विजयादशमी का पावन पर्व,
दे जीवन को उज्ज्वल स्वर!!!
Sunita Katyal




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1 OCT AT 16:13

संसार में आजकल,
एक रवैया दिख रहा अधिकतर लोगों का ,
दिखावा और धन की अहमियत,
गुस्सा नाक पर और दौलत सिर पर सवार ,
बड़े बुजुर्ग सब पिछड़ेपन का पर्याय,
मानते हैं सब खुद को सर्वेसर्वा,
अपनी भावनाओं को समेटना सीखना होगा,
नहीं तो बिखरते देर नहीं लगेगी सबको,
पर समझना कहां चाहते हैं लोग कुछ भी।
यही एक बात कचोटती है दिल में।

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