था खोया जो इस जमीन पर
ढूंढते उसे हम अंधेरी रातो को आसमान में है।-
उन अंधेरी रातों का क्या
इन दिन के उजालों का क्या
जब मैंने मांग भारी उन अंधेरी रातों में
तो इन दिन के उजालों का क्या-
फ़ासला था कुछ हमारे दरमियान
रात भी थी कुछ आधी ही
पास होकर भी दूर बहुत थे
आंखों में प्यार और होंठों पर अंगार भरे थे
बादलों के आंसुओं से धुला समां था
उजड़े प्यार का वह आशियाना था
स्टेशन की इक रात थी
बहुत अंधेरी वो रात थी-
तुम मंदिर में दीपक जलाते हो
और मैं....!
अंधेरी राह में!
अपनी अपनी खुशी है
जिसमें मन को सुकून मिले-
कितने काफ़िले गुज़रे इन अंधेरी रातों मे ll
मगर हमारी तन्हाई को कोई दूर न कर सका ll-
गुलाबी सी शाम
सूरज को ढलता देख अँधेरी हो रही थी।
और चाँद दूर से मुस्कुरा रहा था,
उसे चंदिनी के आने की खबर थी,
और सितारों की महफ़िल का इंतज़ार,
ढल जाने वाली शाम से उसे शिकायत नहीं,
भरोसा था की हर रोज की तरह
वो कल फिर आजाएगी,
एक अनकहे वादे को पूरा करने ।।-
एक अकेला दीया काफी होता है,
अंधेरी रातों में राह दिखाने को..!
सिद्धार्थ मिश्र-
"अंधेरी रात कितनी भी काली क्यों न हो
पर अधिकांशतः इतिहास इसी अंधियारे में ही रचा जाता हैं"
०७:२१pm-
तिनका तिनका का आशियांँ अपना ज़माना मांगे हैं
मुझसे ही वह मेरे घरौंदे का खिलौना मांगे है.....
मेरे लहू का क़तरा क़तरा निचोड़ डाला उसने....
आज मुझसे वह मेरे जिस्म का ख़ाली पिंजरा मांगे है
गिर पड़ी थी ठोकर से हालात के समुंदर में .... मैं...
हसरत लिए आंँखों में ज़िंदगी मेरी साहिल का किनारा मांगे है
आग लगा कर चल दिया शज़र में बड़ी खामोशी से वह
पत्ता पत्ता अपने दर्द का उस से.... दवा मांगे.....है.....
तारीक कर गया कोई राह को अपने शब ए दैजूर के वजूद से
ज़र्रा ज़र्रा अब अमावस्य से उस शख़्स का पता मांगे हैं
वक्त के मिज़ाज ने अपनों से मुझे जुदा कर दिया निकहत
अब मेरे ही अहले ख़ाना मुझ से۔۔۔मेरा पता मांगे है-
वो रात का समय था जब कुछ आवाज आई थी
बारीस की बूंदे टप-टप गिरती दिखीं ,
मेरी तो सांस भर आई थी
खोफ का मंजर ऐसा था, मैं सहमी थी उस पल के लिऐ
जिस पल मेरे सामने लटकी हुई लाश आई थी।-