ऐ खुदा मेरी किस्मत तू मेरे महबूब का साथ लिख दे..
या उठा कलम और जिंदगी भर आंसुओ की बरसात लिख दे..!-
ज़िन्दगी को थामनें के लिये
हाथ ही कितने चाहिये...
बस चार लोग कमा के रखो
जो अर्थी को कंधा दे सकें,
ए ख़ुदा बस किसी के पास
इतनी भी मुफ़लिसी न हो..!-
इश्क़ भी उसका था,
रास्ते भी उसके था..
भरी महफ़िल भी उसकी थी,
लोगों का काफ़िला भी उसका था..
साथ सफ़र में चलने का इरादा भी उसका था,
बीच सफ़र में राह बदलने का फ़ैसला भी उसका था..
आज क्यों तन्हा हूँ मैं ख़ुद से ये सवाल करता हूँ,
लोग तो उसके ही थे,क्या ख़ुदा भी उसका था..!-
" उफ़्फ़.., कितनी खूबसूरती से
ज़िन्दगी ने मौत पे पर्दा डाला है,
घर ख़ाली है...
पऱ फिऱ भी दरवाज़े पे ताला है "-
मैं कहता था ना मुहब्बत "ख़ुदा" है
वो अब यह बात.. क़बूल बैठा है,
पऱ मंन्नतों में वो सबकुछ मांगता है
बस इक मुझे ही.. भूल बैठा है,
यह तो रूह है तेरी ख़्वाइशों के फंदे में
जिस्म तो कब का.. झूल बैठा है,
जाने इसने कितना दर्द सहा होगा
काटों पे यह जो... फ़ूल बैठा है !-
ख़ुदा करे चाहत की रोशनी
हर दिल में जला करे,
बस यह लौ ना बुझे
कोई अँधेरों में ना चला करे,
मुहब्बत के इन रिश्तों की
किस्तें ही ख़त्म नहीं होती
अच्छा सा कोई ईक
छोटा सा ही सिलसिला करे,
ना मैं कोई शिक़वा करूँ
ना वो हमसे कोई ग़िला करे,
वो मिले मुझे फ़िर से
पऱ अजनबियों सा मिला करे..!-
मुझे इक साँस भर के खींच लो
मुझे इक साँस भर के छोड़ दो,
मुझमें समा जाओ बन के रूह सी तुम
मुझे जिस्म बनाकर ओढ़ लो,
चाहूँ के किसी बच्चे सा संभालो तुम मुझे
या रहूँ तेरे हाथों में खिलौनें सा,
जैसे चाहो मुझसे खेलो तुम
जब चाहे मुझको तोड़ दो,
ज़िन्दगी के कहाँ हैं सीधे रास्ते
इक पगडंडी पे बच-बच के चलना है,
चढ़ना-उतरना है औऱ बस है ही क्या
फिऱ आख़िर में इक टेढ़ा सा मोड़ लो,
ख़ुदा को याद करने के लिये
मंदिर-मस्ज़िद तक जाना जरूरी नहीं,
नतमस्तक हो जाओ दूर से ही तुम
औऱ दोनों हाथ जोड़ लो..!-
काश ईक औऱ मन्नत का धागा बांधा होता,
ख़ुदा से तेरे सिवा कुछ औऱ भी मांगा होता..!-