मैंने सीधा-सादा सवाल पूछा था
जवाब में 'हाँ' से ज्यादा शर्तें है ।।-
ये भी है कि मंजिल तक पहुंचे नहीं हैं हम
ऐसा भी नहीं है कि सफर ख़त्म हो गया ।।-
ऐसे तो नहीं तेरी-मेरी बात बनेगी
एक मोड़ पे आओगे तो शुरुआत बनेगी।
अब तक हमारे हिस्से तो बस चार पहर हैं
जब आठ पहर हों तभी तो रात बनेगी ।।-
मैं गाँव से अचानक निकल तो पड़ता हूँ
गाँव को मुझसे निकलने में वक़्त लगता है।।-
गाँव से निकलते हुए सारा सामान बिखेरकर
जो मैं समेटता हूँ तो सिर्फ मेरा देहातीपन ।।-
जब मिली है इसी हालात में मिली है हमें
ये उदासी भी तो सौगात में मिली है हमें ।
उसके आगे फीका है तमाम जीत का जश्न
वो एक मात जो शुरुआत में मिली है हमें ।।-
तुमने ये कैसे सोचा कि चेहरे के लिए थे
जितने भी थे जज्बात सब रिश्ते के लिए थे ।
ख्वाबों पे भी पाबंदियां, जंजीर पाँव में
हम जैसे परिंदे तो नहीं पिंजरे के लिए थे ।।-
चलो, कहते हो कुछ तो सुन रहा हूँ
मगर मैं फैसला तो कर चुका हूँ ।
किसी से अब कोई शिकवा नहीं है
मैं अपने आप से रूठा हुआ हूँ ।।-
सुबह से शाम था ख़्वाबों का सफ़रनामा
फिर सारी रात चलता रहा यादों का सफ़रनामा-