सुबह सुबह पवन के फोन से आंखें खुली। एक एक शब्द सुलगता सा महसूस हुआ। सुबह की फ्लाइट से जाने की खबर ने, जैसे गर्मी को और भी गर्म कर दिया। 8.30 पर निकलने वाली फ्लाइट, अब कहा पहुंची होगी? सिर्फ अनुमान ही लगा सकता हूँ। तुम अब शहर से मीलों दूर निकल चुकी होगी। मुझसे दूर बहुत दूर, मेरी कल्पनाओं में अलग अलग चित्र तैर रहे हैं। तुम यहाँ होगी, तुम वहां होगी। सिर्फ कल्पना के रंगों से तुम्हारी तस्वीर बना सकता हूँ। जो भी हुआ अच्छा या बुरा नहीं जानता। लेकिन तुम्हारे जाने के साथ ही तुमसे दूर होने का डर हमेशा के लिए ख़त्म हो गया। अब बिछड़ने के ख़ौफ़ से आज़ाद हूँ मैं। जाओ खुश रहो।
वसुधा पर, जीवन का आधार! आत्मा से, परमात्मा तक विस्तार! आत्मोत्सर्ग तक, प्रेरित करता विचार! विकार से, स्वतंत्र करता उपकार, आत्मबोध तक, निर्देशित व्यवहार!
भूल गया मैं शिकवे सारे, कोई बात नहीं है..! ख़त्म करो सब बीती बातें, कोई बात नहीं है..! पढ़ सकता हूँ आंखें तेरी, दिन है रात नहीं है..! दूर नहीं हूँ साथ हूँ तेरे, कोई बात नहीं है.! कुछ दिन की बाधाएं हैं बस, कोई बात नहीं है..!
सिद्धार्थ मिश्र
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