।। Delicate By Mirza Galib Sahab ।।
नज़रें उठा के आज इधर देख लो साहब.
आ जाओ ज़रा मेरा भी घर देख लो साहब.
न जाने फिर सफ़र में,मुलाक़ात हो न हो.
कुछ देर हमारा भी नगर देख लो साहब.
तपने लगा है धूप से ये सारा तन- बदन.
कोई तो छाँव वाला शजर देख लो साहब.
रस्सी पे चल रही है ये लड़की गरीब की.
जीवन के एक रंग का,हुनर देख लो साहब.
मंज़िल की आरज़ू में चले प्यास भूल कर.
आए हैं करके यूँ भी सफ़र देख लो साहब.
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