यूँ तो लाखों लोग होंगे करीबी अपने।
जो बिना थके सुन लिया करेंगे बातों की किलकारी ।
मगर अपना तो वही कहलाएगा जो,
खामोशीयोँ को भी सुनसके हमारी।।-
ना पूछ तेरी याद के आगोश मे या ज़िन्दगी हम कैसे जीते है !
कितना फेरेबी है तू यार फिर भी तेरी बात को सच समझते है-
बच्चों की किलकारी से जो आँगन चहका रहता है
मेरा ये अनुभव है यारो भगवान वहीं पर रहता है ।
स्वप्न सलोने पापा देखें माँ ममता बरसाती है
ताई चाची दादी दादू फूले नहीं समाते है !
और भीनी सी ख़ुशबू से मन सबका बहका रहता है
बच्चों की किलकारी से जो आँगन चहका रहता है !
तुतलाते तुतलाते हम भी फ़िर से बचपन जी लेते है
छूट गया जो रस जीवन का फ़िर से हम पी लेते है !
घुटने के बल भी होकर हम अपनी अकड़ भूलते है
बाहें फ़ैलाकर हँसते हँसते हम फ़िर से जी लेते है !
यादों के झुरमुट से ख़ुद का बचपन आँखों में आता है
मीठी सी मुस्कान लबों पर और मन महका रहता है
बच्चों की किलकारी से जो आँगन चहका रहता है
मेरा ये अनुभव है यारो भगवान वहीं पर रहता है !-
मातृभूमि की सेवा से जो पीठ नहीं दिखलाता है
घास फूस की रोटी खाकर अपना काम चलाता है
दुश्मन चाहे हो कोई भी नही अपना भाल झुकाता है
धन्य धरा वो मेवाड़ी है जिसमें महाराणा आता है !-
खाली खाली दिल है मेरा और बड़ी तन्हाई है
यादें बनकर रात अंधेरी अब आंगन में छाई है !
पुरवाई चलने से देखो छुपी कसक भी जाग गई
सूनी सूनी आंखों में अब मेरी बस रुसवाई है !-
क्या कहूं, इतना खूबसूरत इत्तेफाक था ।
रात आमावस की थी और चांदनी मेरे पास था ।।-
प्रातः उठकर सबसे पहले
तुम अपने बाल बनाती हो क्या ?
दरवाज़े के सामने आकर
अब भी तुम मुस्काती हो क्या ?
अपनी नींद भगाने को तुम
तब अंगड़ाई लेती थी !
चाय बनाने के चक्कर में
अब भी बर्तन खनकाती हो क्या ?-
पंछी,तुम देख रहे हो ना,इन बदलती फिज़ाओ को !
लगता जैसे कुछ तो हुआ है , इन हवाओं को !!
पतझड़ के जाते ही फ़िर से,वसुधा में रंग उभर आया !
हृदय के आंगन में फ़िर से इक उपवन है मुस्काया !!
प्रीत-प्रेम,पीताम्बर ओढ़े,थिरक-थिरक रह जाती है !
कोयल भी, आकर मीठा सा, सबको गीत सुनाती है !!
कोयल की,स्वर लहरी सुनकर,मन में भाव उमड़ता है !
कोमल सी पलकों में कोई फ़िर से ख़्वाब घुमड़ता है !!-
इन दुआओं का कुछ तो असर दिखाओ मौला
इस बढ़ते हुए मेरे सिर के दर्द को बंद कर दो !-