पकड़ा दिआ हाथों में कटोरा उस नन्ही उंगलीयो ने कभी बचपन नहीं देखा दो जून की भूख और तन ढकने की तड़प उन बच्चो ने कभी दर्पण नहीं देखा छुप जाते थे हम कभी माँ के आंचल मे उन अनाथो ने घर नहीं देखा। भीगा देती है ओश की बुंदे भी उन्हें सिहर गये ठंड से पर कभी छत नही देखा
दादी नानी की थी कहानी एक थे राजा एक थी रानी माँ की गोद थी परियों की कहानी मीठी लोरी थी वो नींद सुहानी बचपन के वो खेल खिलौने थे मिट्टी के वो सुंदर घरोंदे बाबा के कांधो पर देखे मेले न रहे पर, एक पल भी अकेले.! ये वक़्त था! जब वाकई वक़्त था.।।