माना सर्वविजयी के आगे, अपनी कुछ औकात नहीं
सबको सबकुछ दे पाना, सबके बस की बात नहीं
हम हार गए तो हार गए, जो जीते वो भी दिखे कहाँ
हम हारे तो कुछ सबक लिए,वो जीतकर भी सीखे कहाँ
सर्वसमर्पण के रण में, अगर हारे भी तो हार नहीं
जिस हार में हो जीत छुपा, उस हार का कुछ सार नहीं
जो हारकर लौटा फिर रण में, वही असल विजेता है
जो रण जीता और चला गया, वो कल का बीता त्रेता है
जो चले गए फिर मिले नहीं, जो लौटे भी वो बदल गए
जो जाकर लौटे फिर मिले, वो भी थोड़ा संभल गए
इस हार की जीत के बाद, शेष कुछ बिसात नहीं
सबको सबकुछ दे पाना, सबके बस की बात नहीं
-