बच्चों के हित के लिये स्थापित नियमों को तोड़ना पड़े, तो वह भी तोड़ना चाहिए।
यही सीख हमें रामचरितमानस के इस प्रसंग से मिलती है।-
रावनु रथी बिरथ रघुबीरा।
देखि बिभीषन भयउ अधीरा॥
अधिक प्रीति मन भा संदेहा।
बंदि चरन कह सहित सनेहा॥
नाथ न रथ नहिं तन पद त्राना।
केहि बिधि जितब बीर बलवाना॥
सुनहु सखा कह कृपानिधाना।
जेहिं जय होइ सो स्यंदन आना॥
[ तुलसीदास ]-
प्रातकाल उठि कै रघुनाथा। मातु पिता गुरु नावहिं माथा॥
आयसु मागि करहिं पुर काजा। देखि चरित हरषइ मन राजा॥
[ रघुनाथ प्रातःकाल उठकर माता-पिता और गुरु को मस्तक नवाते हैं और आज्ञा लेकर नगर का काम करते हैं। उनके चरित्र देख-देखकर राजा मन में बड़े हर्षित होते हैं। ]-
मानस में एक प्रसंग आता है जब लखनलाल निषादराज गुह को उपदेश देते हैं, आइए आज उसी पर चर्चा
बोले लखन मधुर मृदु बानी । ज्ञान, बिराग, भगति रस सानी ।।-
आइए, आज पढ़ते हैं वनगमन के समय का प्रसंग
वाल्मिकी रामायण में लक्ष्मण ने राम को दशरथ वध पर विचार करने के लिए कहा था किंतु राम ने उस समय जिस आदर्श को प्रस्तुत किया उसी से राम का चरित्र अवतारवाद की ओर अग्रसर होता है।-
एक ही बात को कहने के कई तरीके होते हैं, आइए बाबा तुलसीदास के माध्यम से यह बात समझने का प्रयास करते हैं।
इससे हम क्या सीख सकते हैं?
= रचना में सौंदर्य की वृद्धि
कैसे?
= आइए, लेख में देखते हैं।-