कर लो खामोशी अख़्तियार
अब हम सुन नही पाएंगे
खुद से ही कहना जो व्यथा हो
यहाँ सब अंजान है लोग बस मजाक बनाएंगे
कभी जो न संभले उलझन आंखें ढक लेना
दिल से सोचना गर दुखी हुये तुम
तो हम जरूर याद आएंगे
कह देना जो पीर हो तुम्हारी
अपना एहसास दिलाने हम आँखों से छलक जाएंगे
चलना बड़ा सँभलकर दूर बहुत हो गए है हम
गिरने लगे तो कैसे बचा पाएंगे
राहों में घर दुश्वारियां लगे उँगलियों में देखना
हाथो में तुम्हे हाथ हमारे नजर आएंगे
अब सीख लेना थोड़ा खुद का भी ख्याल रखना
हम खुद में ही बेज़ार है क्या तुम्हारा ध्यान
रख पाएंगे
कभी जो जरूरत ही बेखौफ आवाज देंना
ज़िन्दगी में बेशक़ न हो शामिल
ओस बनकर ही सही एहसास दिला देंगे खुद
के तुम्हारे साथ होने का
गर वो भी न कर पाए तो हवा बनकर
तुमसे लिपट जाएंगे
बस एक आखिरी गुज़ारिश है
बिना कुछ खाये घर से न निकलना
हम गर देख लेंगे ना तुम्हें तुमसे लापरवाही करते
कसम है हमे गंगा तट में बेशक़ हो लेकिन प्यासे मर जाएंगे
खबर नही मिलेगी तुमको हमारे कफब दफन की
घबरा कर तुम्हे एक इल्ज़ाम और ना उठा पाएंगे
खाली हाथ बेशक़ हो मेरे तेरे बिना
लेकिन दिल तेरी चाहत से भरा लेकर जाएंगे अब हम कभी नही आएंगे-
श्री हरि के चरणों से निकली चरणामृत कहलाई
शिवशंकर की जटाओं से होकर धरती पर आई
पापियों के उद्धार को मोक्ष का द्वार बन आई
गौमुख गंगोत्री से निकली भागीरथी गँगा "माँ गँगा" कहलाई
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सुनो कान्हा
जब जब तुम्हारा नाम पुकारता हूँ सभी कष्टों से स्वयं को दूर पाता हूँ
ये संसार विरक्त लगता है जब जब सामने तुम्हे पाता हूँ
हृदय से तुम्हे लगाता हूँ तो सभी बंधनो से स्वयं को दूर पाता हूँ
मगर जब भी तुम्हारे स्वरुप से नजर हटाता हूँ
इस संसार मे स्वयं को डूबा हुआ पाता हूँ
काम क्रोध मद लोभ मोह अहंकार से भरे इस समाज मे
स्वयं को भी एक हिस्सा बना पाता हूँ
उबारो ना उबारो इस व्यथा से मुझको कान्हा
बस अपने "नाम" की रटन देना
अपने "रुप" माधुर्य के रस से मुझे सराबोर रखना
अपनी "लीला" से मुझे मोहित रखना
अपने श्रीवृंदावन "धाम" मे रमने बसने को मुझे यूँ ही लालायित रखना-
हमे नही चाहत इस भाव सागर से निकलने की कान्हा
सुना है
जो तेरा नाम लेता है वो भव सागर से पार हो जाता है-
इस सकल धरा पर भगवान का अस्तित्व उतना ही है
जितना दूध में घी होने का है
आपको अगर भगवान से मिलना है तो सर्वप्रथम स्वयं को दूध की तरह स्वच्छ करो और स्वयं को एकाग्र रूप में दही जैसे जमती है जमाओ, चिंतन मनन एवं विश्लेषण करके स्वयं को मथो जैसे दही को मथा जाता है
अपने भीतर के सभी व्यर्थ के भावों को दूर करो जैसे दही मथने के बाद कुछ तत्व मख्खन से अलग हो जाते है उन्हे दूर करो
नाम जप कर के स्वयं को पहले मक्खन की तरह मुलायम कर लो
तत्पश्चात भजन की अग्नि में स्वयं को तपाओ
उस अग्नि की तपन से शुरुआत होगी भक्ति की
तत्पश्चात आपको प्रभु रूपी घी की प्राप्ति होगी
ये कर के आपको प्रभु की प्राप्ति होगी ये करने में मुश्किल है लेकिन असम्भव नहीं
सबसे सरल तरीका है प्रभु को पाने का कि स्वयं सरल होना
मगर सरल होना सबसे कठिन कार्य है
राम से बड़ा राम का नाम
बस जपते रहो यही नाम
आपकी सभी दुविधा होगी दूर
बनेंगे सभी बिगड़े काम
🙏🙏🙏llरामll 🙏🙏🙏-