अनुष्का R. त्रिपाठी   (रुद्राम्बर)
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Joined 19 September 2020


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Joined 19 September 2020

सुनो पंडित जी
बात ये नही है कि
तुम साथ नही हो
बात ये है कि बस तुम ही तुम हो
चले गए हो तुम मुझसे मुझे लेकर शून्य कर गए हो मुझे
या फिर खुद को भर गए हो मुझमे
या फिर तन्हा हूँ मै।
या फिर कितना कुछ तो है साथ मेरे
तुम्हारी बाते तुम्हारी यादें
साथ चलना तुम्हारा
मुझसे लड़ना तुम्हारा
कुछ कहना तुम्हारा चुप रहना तुम्हारा
हाथ थाम लेना तुम्हारा
नाता तोड़ देना तुम्हारा
नही तुम मुझे अकेला नही कर गए
तुम मुझे दे कर गए हो आजीवन का अविष्वास अविस्मरणीय दुःखद यादें पीड़ा युक्त नासूर ज़हर सी घुलती सांसे जो आहिस्ता आहिस्ता से मेरे खत्म व्यक्तित्व को मृत्यु की ओर बढ़ा रही है
कितना कुछ तो दे गए हों
फ़िर क्योंकर कहते है लोग तुम मुझसे मेरा सबकुछ ले गए हो

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किसी को सवेरा अच्छा लगता है
खुशियों का बसेरा अच्छा लगता है
टूटकर आज हम उस मोड़ पर है
जहाँ हमको अंधेरा अच्छा लगता हैं

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मैं इकरार करूंगी कब तक
यू इज़हार करूंगी कब तक
जाना ही था तो आये क्यों
रुलाना ही था तो
मुस्कुराए क्यों
ज़िंदगी सेहरा थी मेरी
दरिया मिल ही जाता हूं
प्यासे को ज़हर पिलाये क्यों
देखती हूँ कैसे रहोगे बिन मेरे
मालूम होगी मोहब्बत की हद तुमको जब तक
इंतज़ार करोगे तुमको मेरा बेहद तक
हम जा चुके होंगे अनंत पथ पर तब तक

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एक मूरत है वो
बड़ी खूबसूरत है वो
बात मतलब की नही है
वो जरूरी है मेरे लिए
मेरी सांसो की जरूरत है वो
उसे चाँद कहु
या आसमान
कविता करू या
लिखू ग्रन्थ कोई
है वो पूजा से पवित्र
गीता सी सार्थक
मेरे ख्वाबो की जमीनी हकीकत है वो

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मसला ये नही के तुम याद बहुत आते हो
मुआमला ये है कि तुम भुलाये नही जाते हो
आँसु आते है कभी हँसी के भी बीच मे
ये दर्द ऐसे है कि छुपाये नही जा पाते है

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किसी के लिए हूँ मै ख्वाहिश
किसी के लिए रोशनी चारो ओर हूँ
खामोशियो से मेरी मुझे सब जानते है
बस हक़ीक़त में नही समझता कोई
मैं एक टूटी डोर हूँ
मैं एक खोया छोर हूँ
मैं शांत निर्मल धारा कही
कहि मैं मिट्टी का शोर हूं

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अब दरिया नही बहता हैं
मेरे दिल मे
भावना का
न है चाहत इबादत की
एक इश्क़ से तबाह नही हुए हम
सहमति रही है सारे जमाने की
जाओ दूर ले जाओ सबको मुझसे
मैं ज़ाहिर ज़हर हूँ
जरूरत नही मुझे किसी की
पास जाने की
अपना बनाने की

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अब आज़ाद होना है
मुझसे तुझसे आज़ाद होना है

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रिश्ते
होते ही क्या है
एक भगवान मेरी माँ है
एक शैतान मैं हूँ
एक गुनाह हैं इश्क़
एक सज़ा तुम हो

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नित नया विचार करूंगी
नित नया उपचार करूंगी
लड़ूँगी कटूंगी मरूंगी मैं
न पराजय स्वीकार करूंगी
स्त्री हूं सृजन मेरा कर्म है
धोका हुआ तो क्या हुआ
नया शृंगार करूंगी
तू नही तो क्या हुआ
मैं अब खुद से प्यार लाड़ करूंगी
रुद्राणी हूँ मैं ये आवेश क आदेश मेरा हैं
होगा जो विनाश मेरे द्वारा ही
रोज नया संचार करूंगी
महाकाली के चरणों मे ही रहना हृदय से ऊपर
एक दंडाधिकारी कालिका है
सम्पूर्ण संपन्नता हैं मुझसे
तो मैं ही संघार करूंगी

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