कोई अच्छा ,बुरा नही होता
वक़्त बस 'एक' सा नही होता
तुमको लगने को हम लगेंगे खुदा
पर जो 'दिखता' है वो नही होता
लोग खाते 'तमाम' है ठोकर
पत्थरो में 'ख़ुदा' नही होता
'दाग' लगने लगे है दामन में
इश्क़ अब 'पाक' सा नही होता
वो जो समझा नही वफ़ा को मेरी
हर कोई 'बेवफा' नही होता
कितना मगरूर है 'खुदा' मेरा
लोग कहते है कि नही होता-
'निश्चित' है जो
सब पहले से
तो फिर मेरा क्या
और तुम्हारा क्या
'अस्तित्व' का सूरज
कब डूब जाए
मालूम नहीं...
खिड़कियां 'गिनती' है
तारो को
'वहम' की रात में अक्सर
डूबता है 'सूरज'
हिस्से के
बटवारें में...
जैसे हम
'बट' जाते है
'त्योहारों' में-
स्वार्थी तू भी है।
स्वार्थी मैं भी हूं।
तब तक।
जब तक।
'मैं' की भावना रहेगी ।
हम दोनों के दरमियां।
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"बेहद ख़ास जगह देती हूं मैं....,,,,
उन लोगों को अपनी जिंदगी में..!"
"जिनके सामने बोलने से पहले....,,,,
मुझे कुछ सोचना नहीं पड़ता..!"-
पलक चूम लूँ गर , इशारे न अटके
गुज़ारिश की पहली , नज़र ही न भटके
बुरा से बुरा वक्त , होता यकीं का
यही क्या है कम की , तेरी राह भटके
शिफारिश करेगा , कोई चाँद से क्या
भरी बज़्म में कोई , दिल यूँ न लूटे
रहे ख़ाक अरमां , सभी ज़िन्दगी के
यही हम जो चाहे तो , दिल क्यूँ न टूटे
तमन्नाओ की रात , है आखिरी ये
कोई मर्तबा कितने , कह दिल ये लुटे
मिलावट का सारा , ज़माना है ग़ालिब
नही पास है जिनके , दिल वो भी टूटे-
आसान है तो 'मुश्किल' लगती क्यूँ हर घड़ी
हर आंख, बात 'दूसरी' हालात रो पड़ी
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तेरे सारे ग़म मुझपर ख़त्म होने,
मुझे भला तू कितना सताएगा..
दुनिया के निशाने पर तो मैं,
तू मेरे निशाने पे कब आएगा......-