कई बार यूँ ही देखा है
ये जो मन की सीमा रेखा है
मन तोड़ने लगता है
अन्जानी प्यास के पीछे
अन्जानी आस के पीछे
मन दौड़ने लगता है
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''लिखने की जवाबदेही और किसी के प्रति चाहे न हो, अपने प्रति तो है । हम अपने होने की सार्थकता कहाँ ढूँढें ?"
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"मैंने अपनी पीड़ा
किसी को नहीं बताई
क्योंकि मेरा मानना है कि
व्यक्ति में इतनी ताकत
हमेशा होनी चाहिए कि
अपने
दुख, अपने संघर्षों से
अकेले जूझ सकें।"-
प्रथम प्रेम ही सच्चा प्रेम होता है; बाद में किया हुआ प्रेम तो अपने को भूलने का, भरमाने का प्रयास-मात्र होता है...
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अरे यों तो धोती के नीचे सभी नंगे हैं और इस ससुरी राजनीति में तो धोती के बाहर भी नंगे। पर दा साहब एकदम अपवाद! धोती के नीचे भी धोती ही निकलेगी इस गीता बाँचनेवाले के। खाल खींचने पर ही सामने आ सकता है इनका नंगापन।
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मन्नू भंडारी
(03.04.1931-15.11.2021)
अंतर्द्वंद्व, नारी मन, प्रेम
समझना हो तो रख दो
किताबें एक तरफ़ सारी
और
पढ़ डालो मन्नू भंडारी
यकीन मानो खो जाएगी
सुधबुध तुम्हारी
उनके जाने से हो गई
हिंदी साहित्य को क्षति भारी
कम ही साहित्य सेवी हैं
जो रहते निर्लिप्त
आप रहेंगी हमारे हृदय में
हमेशा जीवित-