"टुक्कड़ तोड़ भुक्खड़"
नसीहत न दें वरना
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गालियाँ खाएंगे! और क्या?
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किसी ने वस्त्र देने की कोशिश ना कि,उसे
जो "जी आया,"जिसको उसने थूका उसपर
मन किया तो बच्चों के साथ पत्थर फेंका ,
जुबान फेरने से कुछ नहीं होता ,,,जनाब
सच तो यही है,कि आज भी
हमने कितने नंगों को ,,सड़क पर चलते देखा ,...
वे सोचते हैं,दुनिया बगैरत है ,
पर यकीन मानिए एक दिन उसका भी होगा लेखा-जोखा ,,
महज अमीर बनने से कुछ नहीं होता ,,जनाब
हकीकत यही है कि कितने प्रताड़ित भीखमंगो को ,,
हमने धनिकों के चौखट पर भूखे मरते देखा ,,....-
गीदड़ की गुर्राहट देखो
शपथ उठाई मरने की।
भिखमंगे ने दी है घुड़की
एटम हमला करने की।।
😊शक़ल देख ले शीशे में😊-
ओये फ़ाकिस्तान!
पूरे कॉरिडोर में
बिठा दे कटोरा लेकर
अपने भिखमंगों को।
😊रोटी का जुगाड़😊
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दोहा
मुँह में तो 'गंगे' बसे,
'दंगे' बसे दिमाग।
'भिखमंगे' ने दी लगा,
घर गरीब के आग।।
दोहाकार
नवल किशोर शर्मा 'नवल'-
आजतक कुछ नहीं मिला सरकार से?
नहीं साहब, हमने माँगा भी नहीं।
क्यों? क्यों नहीं माँगा कभी?
ये खुद ही भिखमंगे हैं;
नाम चढ़ाने का पैसा माँगते हैं।
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