कविता से ही कवि बना हूं ।
कविता में ही विलय होगा।
राग नहीं छीनी है किसी की।
मेरा खुद का लय होगा।
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अनाथ शब्द
जैसे सूखी डाली के टूटे बिखरे पत्ते।
ऐसे होते है मासूम अनाथ बच्चे।
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माना मै हूं गरीब पर
आग लगा दूं पैसों में
इतनी मेरी औकात नहीं ।
मारू चंद सिक्को के लिए
किसी रिक्शाचालक को
ऐसी छोटी मेरी औकात नहीं।
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तारीफ आपकी उन्हें पसंद होती।
तो वो दिल और जान दोनों संभाल के रखते।-
मेरा दिल है साहब
सत्यनारायण भगवान
का प्रसाद नहीं
जो सबको दे दूं।
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✍️✨दिनचर्या एवं क्रम✍️✨
उदित प्रभाकर, हर्षित मन।
अग्रचाल में धीमे क्षण क्षण।
संध्या बेला, शीघ्र समर्पण। ✍️✨
सहस्त्र जन, शांत निकेतन।
हर्षित मुख, निखरे लोचन।
दोषी नज़र व भद्र विवेचन। ✍️🥇
संध्या गमन, निशा आगमन।
भूखे पेट व रात का भोजन।
लघु भूख और दीर्घ निवेदन। ✨✌️
भोजन सम्मुख, तीव्र भक्षण।
लगे बिछौने, शयन तत्क्षण।
पुरानी रीति व अद्भुत लक्षण।✨✍️
शयन की बेला, बंद नयन,
सुंदर सपने ज़रा मंद मंद,
जागृति व दिन पुनरागमन। 🥇☔-
एक अहसास हो तुम
मेरे दिल के पास हो।
मेरे जीने की वजह हो तुम
तुम्हीं मेरी सांस हो ।
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मुहब्बत जरा सा सीख ली मैंने
तेरे दीदार से शुरू होती है तेरे दीदार पे खत्म।-
ऐसे यूं अहसास दिलाना कैसा
रोज़ रोज़ मुझको रुलाना कैसा
मिलने नहीं आते फिर भी
पार्क में रोज़ रोज़ बुलाना कैसा।।-