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आप सभी सदस्यगण का बहुत-बहुत आभार
कीमती समय निकालकर मेरे लेख को देते हैं इतना प्यार-
(बचपन)😢
बड़ी जल्दी बिदा होकर गुजर जाता यहॉं बचपन ।
जरा से वक़्त में ढलकर गुजर जाता यहॉं बचपन।।
पिता के साये में रहकर कभी ममता के आँचल में।
बुआ के प्रेम में पलकर गुजर जाता यहॉं बचपन।।
कभी दादी की गोदी में लड़कपन लोरियॉं सुनकर ।
कभी ननिहाल में रहकर गुजर जाता यहॉं बचपन।।
अलग होकर कभी मॉं-बाप से सुनसान कमरों में।
किताबी बोझ में बँधकर गुजर जाता यहॉं बचपन।।
खिलौने रेत मिट्टी के किले महफूज़ घर रचकर ।
कहीं पर तोड़कर पत्थर गुजर जाता यहॉं बचपन।।
कहीं पर ठोकरें खाकर कभी जुल्मों सितम सहकर ।
कभी फुटपाथ पर सोकर गुजर जाता यहॉं बचपन।।
कभी जब हादसे में खुशनुमा परिवार छिन जाता।
खुदा की रहमतें पाकर गुजर जाता यहॉं बचपन।।
पिता के हाथ की अँगुली पकड़कर हौसला पाकर।
बड़ी जल्दी पलायन कर गुजर जाता यहॉं बचपन।।
दिल से- प्रशांत 😭-
कलम है शातिर, पाठक है भोला
साहित्य ने देखो बदला है चोला
छंद रस अलंकार की अब जरूरत नहीं होती
बिन शृंगार क्या कविता खूबसूरत नहीं होती
खूबसूरती के लिये खुद को और सजाती नहीं है
बिना चीर के कविता अब लजाती नहीं है
कविता आत्मा है देह नहीं है
इसमें अब जरा भी संदेह नहीं है-
लगीं थीं महफ़िल पाठकों की बांट रहें थे ज्ञान
बाहर जा कर देखा सब घूम रहे थे परेशान।।
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