पन्ना धाय
(A Tribute to Rajputani lady's supreme sacrifice)
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"पन्ना का राष्ट्र-प्रेम"
मेवाड़ के टिमटिमाते दीपक को बुझाने वाला था,
जो उदय होते सूर्य को ढकने वाला था।
चल रहा था तेज बहती अंधड़ सा वह,
अब वह दुष्ट, निर्दयी कहाँ रुकने वाला था।।
लेकर खड्ग, उदय को अस्त करने वाला था,
इस धरा पर एक और अधर्म करने वाला था।
ना जाने क्या सत्ता का लालच था उसके मन में,
जो राष्ट्र के अहित का अब दम भरने वाला था।।
छल-कपट से वह राज्य हथियाने वाला था,
वह क्रूर, कायर, अहंकारी अत्याचार करने वाला था,
शायद उसे यह विदित था ही नहीं कभी
उसके हाथों से मेवाड़ का माझी बचने वाला था।।
माता वो थी जिससे राष्ट्र का हित होने वाला था,
जिसका वह अद्भुत त्याग इतिहास गढ़ने वाला था।
आया था कायर बन वीर वह धृष्टता के लिए,
चंदन को असमय अब चंदन मिलने वाला था।।
माता की आंखों के आगे खड्ग से जो प्रहार हुआ,
दबा रह गया हृदय के भीतर वो करुण चीत्कार हुआ,
मेवाड़ी दीपक को बचाने अपना दीपक बुझा दिया,
इस दीपक से ही मेवाड़ का भाग्योदय फिर से हुआ।
जय हिन्द, वन्दे मातरम्।।-
//पन्नाधाय का बलिदान//
आ लाल मेरे....
गहरी निद्रा रानी तोहे बुलाए।
विवश पन्ना आज तोहे,
अंतिम लोरी सुनाए.....।।
है बडभागी चंदन तू
चंदन तिलक माथे लगाए।।
ना रोए माई तेरी,
हर्षित हो विजयी जयकारा लगाए।।-
स्वामिभक्ति को सर्वोपरि रख कर,
अपनी ममता का दिया उन्होंने बलिदान
पन्ना नाम की थी वो धाय
जिसके मातृत्व का गुणगान हर शख्स,
हर युग गाएँ।
#1_कोशिश-
दूर नहीं गगन भी तुझसे
"कल्पना" सी उड़ान तुझमें
प्रेम की अनकही भाषा हैं तू
"मीरा" सा प्रेम गान तुझमें
सौपं दिया कलेजे का टुकड़ा
पन्ना सा बलिदान तुझमें
रणभेरी में काल बन गरजी वो
"झाँसी का अभिमान" तुझमें
काट दे दिया सिर क्षत्राणी
"हाड़ी" सी पहचान तुझमें
अलख जगाई आख़र की जो
वो "सावित्री" नाम तुझमें
कूद पड़ी ज्वाला में जिंदा
जौहर का आत्म सम्मान तुझमें
भूल गया अज्ञानी मानव
सृष्टि के सृजन का सारा ज्ञान तुझमें-