QUOTES ON #पनीली_आँखें

#पनीली_आँखें quotes

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बेवफाई का इल्ज़ाम,तुझपे लगा अब भी बदस्तूर है,
अहद-ए-वफा, मेरी नीयत में लबरेज-ओ-भरपूर है।

मुझे यकीन तो है तुझपे, तेरी जांनिसारी ऐय्यारी पर,
ये वस्ल-ए-विसाल की सरहद, छिटकी हमसे दूर है।

तेरी नज़र के रहमोकरम की, मोहताज हैं धड़कन,
मुझसे न सही, साँसों पर तेरा अख़्तियार जरूर है।

शामियाना लगा करते रहे इंतज़ार, अभी आएगी तु,
इल्ज़ाम लगा रही दुनिया,मुझपे सवार तेरा सरूर है।

समझौता कहाँ तक कुबूल करें, दूरी सहन नहीं अब,
तेरी सलामती में जुबान पुकारे, हर पल चश्मे बद्दूर है।

रुख़ से चिलमन जब से उठाई,बदमस्त सारा आलम,
"शौक़" नशेड़ी साबित, मगर मोहब्बत में बेकसूर है।

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जैसे लम्स में सदा रम्ज बेशुमार लज़्ज़त,तेरी हया में छुपी मोहब्बत,
दिलरूबा अब्र की चिलमन हटा, आफताब भी माँगे तेरी सोहबत।

तुम मेरी हो, ये इत्मिनान है मेरे दिल में, फिर पाने का क्यों फितूर,
इक कसक लर्ज़िश करती दिल के दरमियान, मिले मुकम्मल कुर्बत।

ये तेरा लज़ीज़ हुस्न-ओ-जोबन, बेखबर क्यों एहसास की बारिश से,
मेरी छुअन से निखरा तेरा मलाहत, आ गले लगा ले छोड़कर मुरव्वत।

ये मासूम दिल पहले भी नज़रबंद रहा, खाकर बेवफाई के नुकीले तीर,
कोई तो होगा मुनासिब जरिया, मिले तेरे शहर-ए-क़ल्ब की सल्तनत।

मसह की तलब में मुक़त्तर रिसे रोम-रोम, कर वस्ल-ए-विसाल जतन,
"शौक़" की इक बाकी है हसरत, उम्र भर हासिलात रहे तेरा सहाबत।

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ज़िन्दा ज़ख़्म दे गया, करके पाकीजा दिल में प्रवेश,
कराल काल रूप धर विघ्न नाशक, पल में हृदयेश।

समर की कटार सा तीक्ष्ण, मुख पर काकुल प्रहार,
समय नियोजित किया नहीं, जीवन लील गए सर्वेश।

तीखी चितवन, नयनाभिराम दृश्य, अभिराम नज़र,
कुटिल हृदय हलाहल पूरित, छल खातिर छद्म वेश।

ज़िन्दा ज़ख़्म रिसता रहा ताउम्र, तुझबिन भरता कैसे,
चाँदनी श्रृंगारित अवनी, दग्धता हर न पाया राकेश।

तेरे दिए हर घाव की, अपनी इक अलग कहानी है,
"शौक़" का पतन, मोहब्बत का सशर्त ये फलादेश।

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शाम ढलती, रात सुबह में बदलती है,
तुझसे बात करने की तलब नहीं बदलती है।

सूरज बदले, चंदा बदले, ऋतु बदलती है,
मगर मेरी एक आदत नहीं बदलती है।

वो आती है, बेमतलब अलविदा हो जाती है,
पर मेरी मुँहजोर वफा नहीं बदलती है।

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तुम्हें हक बख़्शा नहीं, किसी के नहीं हो सकते मेरे हो,
तेरे पैरों की धूल, ये मेरी किस्मत, शाम हो या सवेरे हो।

इक ही आरजू पलती रही, इस तन्हा दिल की तन्हाई में,
सदियों का सफर तय किया, कहने को कि तुम मेरे हो।

तेरा मेरी पहचान से बेबाक इन्कार, बोझिल हुई आस,
"शौक" की आख़िरी फरियाद, अब कह दो तुम मेरे हो।

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हौसला टूटा, मगर एक उम्मीद पे इंतज़ार बाकी है,
अश्क़ सूख गये, तेरी आमदगी का करार बाकी है।

नज़र मिली, दिल की धड़कनों ने छेडा राग मल्हार,
इकरार हाजिर उनके हुजूर में, तेरा इज़हार बाकी है।

इल्म की सीख, पूरी कहाँ होती, महज़ इक जन्म में,
हर कायदा सिखाया, अभी षोडशी संस्कार बाकी है।

प्यार की दहलीज़ पर वो पहला क़दम, इतराये मन,
सुलह का मुकाम पाने से पहले,इक तकरार बाकी है।

बेकरारी का आलम,फलक बरसे बदरा,जमीं पर नैन,
नफरत ने उजाड़ा आशियाना, फिर भी प्यार बाकी है।

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तेरी आँखें शराब के छलकते मयखाने, सुर्ख होंठ अधखिले हुए गुलनार,
मुझे जानना ही होगा, तेरी बुझी सी तब्बसुम की छुपी हकीकत क्या है।

तहकीकात का तजुर्मा करते, लर्ज़िश करे दिल घायल बुलबुल की मानिन्द,
तुझे अबतलक नहीं एहसास, मेरी पाकीजा महब्बत की ताकत क्या है।

बेनागा होते रहे जलील, तेरी गुलज़ार महफिल में, तेरी नज़र के सामने,
"शौक़" बदनाम फरिश्ता नहीं मालूम, हकीकतन मतलब-ए-शराफत क्या है।

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28 OCT 2021 AT 17:39

किसी की बेरूख़ी से,
तसलसुल तंग आकर,
निखर जाता है प्यार,
बेबाक बेमुरव्वती पाकर।

प्यार हो जाता है असीमानंद,
अवरोध घातक से टकरा,
निराकार हो जाता स्वरूप,
निनाद करता जैसे उन्मत्त सागर।

बेशक मसरूफ रहो खुद में,
जुदा हो जाओ जब खुद से,
समझ जाओगे पाषाण बने नीर,
प्रीत ही बशर को बनाती आगर।

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ज़िंदगी को हसीन कर जाती, ये रिश्तों की पाक़ीज़गी,
इक-दूजे का पूरक बना, ज़िंदादिल बनाती शाइस्तगी।

रिश्तों की साफ-सफाई, जो करे कद्र पाए सदा ताजगी,
वरना ज़ीस्त का हर पल, लबरेज करने लगेगा बेचारगी।

इक ने कहा और दूजे ने मानी, नानक कहें दोनों ज्ञानी,
स्नेहक है रिश्तों में जरूरी, जो अनायास दे जाती सादगी।

हर तरफ स्वार्थ की आपाधापी, रिश्तों में जहर भर जाती,
महकने लगें रिश्ते, इकदूजे संग मिल, कर फर्ज़ अदायगी।

तन्हाई की कर इबादत, अपने हाथों सलीब पर लटकते,
"शौक़" सीख नाते निभाने का हुनर,वरना ले बर्खास्तगी।

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संगी, अब लौट जाओ ज़िंदगी में लम्हे जरा हैं कम,
कैसे निकलेंगे साँस तुझबिन, इसका न कर तू गम।

चंचला की फितरत, इक पल आगमन, अगले गमन,
दौलत नहीं, सिर्फ कर्मण्यता मिटाती हयात का तम।

तसव्वुर में तेरी तसव्वुर से, हौसला पाएगा मेरा मन,
पाटेंगे युगों की खाई, संकल्प का संबल तुम हरदम।

अलविदा कहकर पलटना, नामुमकिन होगा तेरे लिए,
पर क्या विदा होते वक़्त, सहजता से उठेंगे तेरे क़दम।

वक़्त करके गुफ्तगू, खामोशी से कहेगा पिन्हा जुस्तजू,
"शौक़" जब्त कर लेगा जज़्बात, पर मिज्गाँ रहेंगी नम।

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