ख़ालिक़ मेहर जिस पर तिरी हो जाए है
बेज़ान काया बीच प्राणों की दिशा हो जाए है-
वो क्या जाने अमृता क्यों न मिली साहिर को।
अगर हो जा... read more
हर परेशानी एक नज़र से हल हो जाएगी
जब जरूरी लगे मेरे पास चले आना तुम-
दुनिया तो भूल ही जाती है, नहीं इसका कोई ग़म है मुझे
जिसे सराहा, तराशा, उसके भूलने का ही मातम है मुझे
तेरे लफ़्ज़-लफ़्ज़ में मेरे होने का याद महात्म्य है मुझे
तेरी अदावत, गुस्सा, नफ़रत प्यार रखे सलामत है मुझे
तुझमें उमगते हर भाव की कारक मेरी मोहब्बत ही तो है
बद्दुआ में भी तुमने बताया अपनी एकल अमानत है मुझे
तेरी एक झलक के लिए छान दिए हैं कितने सहरा मैंने
जो प्यार है ही नहीं फिर क्यों देती बेतरह सजावट है मुझे
छोड़ लुकाछिपी का खेल, क़फ़स-ए-बंदिश से रिहा कर
ये कैसी मोहब्बत तेरी पल-ब-पल दे रही ज़लालत है मुझे
नहीं हो तुम अपने आपे में एक पल मुझसे बात तो कर
'शौक़' तेरा स्नेह आलूदा जज़्बात दे जाता तरावट है मुझे-
वक़्त ही जब दगा दे जाए शीरीं-ए-जुबान काम नहीं आती
इश्क़ जब सिर पर सवार हो हिकमत कोई काम नहीं आती-
सुन दास्तां-ए-दर्द-ए-दिल आँखों में सुनामी आई है
तेरी छुअन के जादू से ज़र्द शज़र पर जवानी आई है
ख़ुशबू-ए-कली से अलि को याद आशनाई आई है
लब से गिरे कतरे पर मौत की हसीन रानाई आई है
भूले हुए लम्हे ज़िंदा करने दिल में तन्हाई आई है
ये तेरे दिल में रश्क़ थी जो राब्ते में जुदाई आई है
ये अहसान उधार है इसे चुकाने को खुद्दारी आई है
मुझे डूबाने को मेरी महबूब नैन कर गुलाबी आई है
जब-जब चली पुरवाई यमुना पार से ख़ुमारी आई है
'शौक़' तेरी दी तड़प संग लाईलाज़ बीमारी आई है-
थामकर हाथ मेरा फिर अकेला छोड़ तो न दोगे
बीच भंवर में ज़माने से डर नाता तोड़ तो न दोगे-
चाँद भी होगा, ये ख़ूबसूरत नज़ारे भी गवाह होंगे
इस एक पल के बाद तेरी यादों से भी तबाह होंगे-
तेरी राह में छुपे शूल अपनी पलकों से चुनते ही रहे
मगर तुम रक़ीब संग मिल जाल-ए-मौत बुनते ही रहे
आरजू रही सदा तुझे सराहें, तेरे तले बिछते ही रहे
तेरे रुख़सार की शफ़क़ रखने को धूप में तपते ही रहे
जब भी करीबियत की बात चली मुझसे बचते ही रहे
मुझसे दूर रक़ीब की बाहों में चाँदनी शब बंधते ही रहे
बहुत कोशिश की तुझे भूल जाएँ ये हो ना पाया कभी
मासूमियत पर तेरी मैं क्या मुझसे हजारों मरते ही रहे
खुली हैं आँखे मौत के बाद भी हरजाई तेरी तवक्को में
लोग कब्र में उतार मेरे नैन में तेरे चित्र को तकते ही रहे
कमाल की मयार तेरी, चंद साँसों की महक़ार ले डूबी
'शौक़' तुमसा इश्क़बाज़ न दूजा बेमौल बिकते ही रहे-
मौत से मुलाक़ात थी इल्तिफ़ात क्या करते
महबूब के एक इशारे पर जाँनिशार कर चले-
जाँ निसार तुझपर दिल कहे बना लूँ तुझसी सूरत अपनी
संवर जाऊँ मुक़द्दस साथ से बना ले मुझे जरूरत अपनी
तेरे अलावा किसी को घुसने की इजाज़त देता नहीं दिल
मुझे चाहिए तेरे हर लम्हा-ए-फ़ुर्सत दे जा मगरूरी अपनी
जब छुआ कचनार कली को, सौरभ फूल की फैलने लगी
तेरे ज़िस्म पर अँगुलियों की हरकत माँगे है,मजदूरी अपनी
हमारी वस्ल की दास्तां शुरू हुई ख़त्म होगी मौत के बाद
तुझे आगोश की तंग गिरफ़्त दूँ जो बना ले मजबूरी अपनी
पल का सब्र नहीं मेरी काया का तनाव चाहे विराम तुझमें
'शौक़' के नाम लिख दे हर तमन्ना जो तेरी है अधूरी अपनी-