QUOTES ON #नाज़नीं

#नाज़नीं quotes

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28 AUG 2017 AT 12:21

झुलस गयी थी ज़िन्दगी
रास्ते भर..
धूप बहुत थी

कुछ नमी लाने,
आँसुओं में भिगोकर,
रखी थी ज़िन्दगी

सूखने टाकी ही थी अभी
एक नाज़नीं की
ज़ुल्फ़ों की ठंडी छाँव में

ना नाज़नीं रही
ना ठंडी छाँव
ना ज़िन्दगी को ज़िन्दगी मिल पायी

नमी भाप हो गयी
ज़िन्दगी..
बर्बाद हो गयी

- साकेत गर्ग

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19 JUL 2017 AT 1:11

नज़ाकत, उल्फ़त और शरारत का पैमाना है
वो नाज़नीं छलकता जाम, वही मयख़ाना है

कहने को, दिखने को है, वो भी आदमज़ाद
असल में परी, अप्सरा, ख़ुदा का नज़राना है

- साकेत गर्ग

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5 JUL 2017 AT 3:53

कू-ए-दोस्त से जो
तन्हा-तन्हा सा गुज़रा
यह अहसास हुआ
यही है वो नाज़नीं
जिससे मुझे है प्यार हुआ

लाज़वाल लाजवाब सा प्यार हुआ
किया नहीं फ़िर भी यह प्यार हुआ

मरासिम पुराना सा
दस्तूर नया सा हुआ
जिससे होती है सबसे ज़्यादा बात
उसी से ना कहने का मर्ज़ सा हुआ

साथ होते हुए जो कभी ना हुआ
वो उठी वो गयी और गज़ब हुआ
ये क्यूँ हुआ कैसे हुआ, कब हुआ
जो भी हुआ, बड़ा बे-सबब हुआ
मैं चला यारों
मुझको है इश्क़ हुआ

- साकेत गर्ग

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15 AUG 2018 AT 0:01

करो शुक्रिया जो हुए हम तुम्हारे
वगरना जहाँ में बहुत नाज़नीं थी।।

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26 JUN 2017 AT 16:40

बड़ी-बड़ी बातें बनाता था मैं
सारी दुनिया को उनमें, फँसाता था मैं
यूँ तो मिल जाते थे कईं दीवाने, हर मोड़ पर
पर किसी का दीवाना, नहीं बन पाता था मैं
ना जाने कहाँ से, वो 'नाज़नीं' उतर आयी
'परी' सी बनकर..इस बहते 'दरिया' में समाई
सबको बातों में फँसाने वाला..
बड़ी-बड़ी बातें बनाने वाला..
ख़ुद उसकी कुछ प्यारी बातों में खो गया
न जाने मुझे क्या हो गया?
ना कभी मिला, ना फ़िर मिलने की आस है
पर लगता है जैसे, वो हर पल मेरे पास है
कहा उसने भी वही सब, जो सब कहते थे
पर न-जाने क्यों उसका कहना, कुछ ख़ास है
वो मिलेगी नहीं मुझे, पता है मुझे
पर न-जाने क्यों
इस 'बे-ग़ैरत' दिल को
....कुछ आस है
- साकेत गर्ग

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25 JUN 2017 AT 2:52

ख़ुद ही ने दिया था ग़म, ख़ुद ही हँसा गयी
वो नाज़नीं आज फ़िर, 'सागा' को फँसा गयी

- साकेत गर्ग

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22 JUN 2017 AT 3:09

पहली बार जब तुम, मुझे दिखी थी
फ़िरते इस बंजारे को, 'मंज़िल' दिखी थी
वो 'बांकपन', वो 'यौवन', वो 'शोखियाँ' दिखी थी
बिन पिये 'मय' मुझे, मस्तियाँ दिखी थी
वो दो उंगलियों में फँसकर
बालों का.. कान के पीछे जाना
ठीक उसी समय, नज़रों का 'झुक' जाना
मुझे किसी 'फ़कीर' की, 'बन्दगी' दिखी थी
धीरे से उन, आँखों का हिलना
मुझसे हटना.. मुझसे मिलना
कड़कती धूप में, ठंडी 'छाँव' दिखी थी
मेरे चेहरे पर जब तुम्हें, हँसी दिखी थी
तुम्हारें हाथों पर मुझे, ठंडी 'सिरहन' दिखी थी
बातों में 'बचपना', आंखों में 'अपनापन'
तुम मुझे चहकती-गाती, 'नाज़नीं' दिखी थी
वो 'शर्म-ओ-हया', वो 'बेबाकपन',
वो 'घबराहट' दिखी थी
वो 'लड़कपन', वो 'सादगी',
वो 'मुस्कुराहट' दिखी थी
ना लाग, ना लपेट, ना पाखण्ड
तुम मुझे हसीन सी कोई, 'अप्सरा' दिखी थी
पहली बार जब तुम, मुझे दिखी थी..
सच कहता हूँ..मुझे आसामन से उतरती
मेरी 'ज़िंदगी' दिखी थी
- साकेत गर्ग

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23 JAN 2018 AT 1:34

ज़िन्दगी में आज तलक़ सिर्फ यही करता आया
जितना है पाया, उससे ज्यादा लुटाता आया
मुझे कभी मिला नहीं 'हाँ गिला है' पर गिला नहीं
जो मिला, जब मिला, जहाँ मिला, उसने मुझसे है कुछ तो पाया
कोई रहा अधूरा, उदास और खाली तो वो एक मैं ही रह पाया
जितना लुटाता गया उसका एक सूत भी ना पाया
अहसास यह घर कर गया, इल्म भी यह हो गया
'सागा' तू यहाँ सिर्फ देने है आया
पलकें भले ही भीगी, पर मैं मुस्कुराया
हर उम्मीद, हर ख़्वाब, पाने की चाह, मैं भुलाता आया
पर न जाने कहाँ से इस स्याह अँधेरे में एक रोशनी सी हो गयी
बियाबान वीराना था न-जाने कहाँ से झमाझम बारिश सी हो गयी
एक हसीन सी परी न-जाने कहाँ से मुझे खोजती आ गयी
उस परी को देख मैं ख़ुद को रोक ना पाया
बरसों से दफ़न ख़्वाब और चाहतें अंगड़ाई लेने लगी
कुछ पाने को मेरी रूह फ़िर तड़पने लगी
उस नाज़नीं से मैंने अब, वो सब है पाया
मिला है इतना, जितना इस फ़कीर की झोली में न समाया
आज तलक़ जो भी बिन लालच लुटाता आया
वो सब सूद समेत, एक उसी से, वापस है पाया
अब ज़िन्दगी से ऐसा भी कोई गिला नहीं शिकवा नहीं
सिवाये इसके की तू पहले मुझे क्यों मिला नहीं
पर अब इस रूह को सुक़ून इतना है आया
जितना लुटाया उससे ज्यादा अब है पाया
ज़िन्दगी के सौदे में अब नुक़सान नज़र नहीं आया
जब से तेरा यह बे-बेबाक, बे-पनाह, बे-ख़ौफ़, बे-हद 'प्यार' है पाया

सुनो ना! तुमसे मिलकर ही मुझे जीने का मज़ा है आया
- साकेत गर्ग 'सागा'

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23 JUL 2017 AT 1:55

कल रात जो रात थी
थी विरह की रात
वस्ल की भी रात थी
तुमने मुझे सताया था
तड़पाया था रुलाया था
आज मैं पूरा बदला लूँगा
सच कहता हूँ, तुम्हें सोने ना दूँगा
सारी रात तुम्हें प्यार करता रहूँगा
तुम चिढ़ती रहना मैं छेड़ता रहूँगा
कभी तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से खेलूँगा
खोलूँगा..बांधूँगा..फिऱ खोलूँगा
गाल हैं जो तुम्हारे उन्हें खीचूंगा
चूमूँगा.. खीचूंगा.. फ़िर चूमूँगा
तुम गुस्से से झनझना जाओगी
मैं नज़्म सुना ख़ुश कर दूँगा
तुम शर्मा जाओगी, मैं भी हँस दूँगा
प्यार भी करता हूँ, दीवाना भी हूँ
अपनी नाज़नीं से बदला कैसे लूँगा
पर सुनो!
सच कहता हूँ..तुम्हें सोने नहीं दूँगा
- साकेत गर्ग

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15 JUN 2017 AT 0:55

मैं सूखा-सा दरख़्त
वो बादल हसीं
उसको बरसना
होगा यहीं

मैं चुभता-सा काँटा
वो कली नाज़नीं
हमारा मिलन
होगा नहीं

- साकेत गर्ग

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