तुम्हारा जानती हूँ मैं अब हर मर्ज़ की दवा हो ये जरूरी तो नहीं तुम अब अपना दर्द छुपा क्यों नहीं लेते यादों को उसकी कहीं गहरे में दफ़ना क्यों नहीं लेते माना कि मौन है वो अभी उसी मौन को अपनी जुबाँ बना क्यों नहीं लेते दर्द बहुत है तुमको उन्हें दवा बना क्यों नहीं लेते सहना पड़ेगा ताउम्र सहेज के रख लो इसे किसी सौगात-सा अब शिकायत करने से नहीं है कोई फायदा ये बात अपने दिल-ए-नादां को बता क्यों नहीं देते।।
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