नारी तुम केवल श्रद्धा हो
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नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,
विश्वास रजत नग पग तल में।
पीयूष स्रोत सी बहा करो ,
जीवन के सुन्दर समतल में।।
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✍ #जयशंकर_प्रसाद ✍
(नारी के महत्व और सम्मान को
दर्शाती जयशंकर प्रसाद जी की
सर्वकालिक बहुमूल्य पँक्तियाँ)
【प्रस्तुति: #Veenu"】-
वह पथ क्या, पथिक कुशलता क्या,
जिस पथ पर बिखरे शूल न हों,
नाविक की धैर्य परीक्षा क्या,
जब धाराएं प्रतिकूल न हों !
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जिनकी लेखनी में कमनीय माधुर्य की रस धार हो,
छायावादी युग के प्रवर्तक लेखक जयशंकर प्रसाद।-
यह आज समझ तो पाई हूँ
मैं दुर्बलता में नारी हूँ।
अवयव की सुंदर कोमलता
लेकर मैं सबसे हारी हूँ।
पर मन भी क्यों इतना ढीला
अपना ही होता जाता है,
घनश्याम-खंड-सी आँखों में
क्यों सहसा जल भर आता है?
सर्वस्व-समर्पण करने की
विश्वास-महा-तरू-छाया में।
चुपचाप पड़ी रहने की क्यों
ममता जगती है माया में?-
जीवन के सूक्ष्म एवं व्यापक आयामों के चित्रकार,
छायावादी युग के प्रवर्तक देव, जयशंकर प्रसाद।-
आसाधारण व्यक्तित्व धीर-गंभीर मनोयोगी लेखक,
छायावाद के प्रवर्तक-जनक-ब्रह्मा जयशंकर प्रसाद।— % &-
आधुनिक हिंदी साहित्य एवं रंगमंच के कलाकार,
छायावादी प्रवर्तक कलाधर श्री जयशंकर प्रसाद।-