आते हैं हम छोड़ वहां...
"अपनी यादें"
जाते हैं हम जहां...!!!
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प्यार तो था, पर अब नहीं है......
तेरी फिकर होती थी, पर अब नहीं है
और तुझे लगता हैं...✨
तेरे बिना जीना छोड़ दूंगी तो,सुन
ये तेरा वहम है... हकीकत नहीं है 💔-
एक वक्त था जब उसे मेरी
हर अदा पे प्यार आता था...
पर अब मेरी मीठी बाते
भी उसे कड़वी लगती है 💔
उसे कोई और मिल गया है
इसलिए मेरी हर बात
उसे अब बुरी लगती हैं-
जब जब खुद को
ढूंढने निकलती हूं
हर दफा एक हारा हुआ इंसान
ही पाती हूं
बहुत कोशिशें की है मैंने
खुद को समझाने की,पर
यकीन मानिए साहब
कुछ वक्त के बाद ये सारी
कोशिशे बेअसर सी हो जाया करती हैं
पर जब जब पीछे मुड़कर
निहारती हूं तब तब
एक पागलपन सा छा जाया
करता है,कब रो रही हूं
कब हंस रही हूं,खिलखिलाता
चेहरा कब यूं खामोश हो जाता है
कुछ समझ नहीं आता,बस
मेरी कोशिशे बेअसर हो गई हैं अब
हॉ भीड़ में भी आजकल अकेली
रहने लगी हूं मैं
हॉ हजार दोस्त है मेरे पर
यकीन मानिये साहब
"कोई साथ नहीं...!"
"हॉ,जब जब खुद को ढूंढने
निकलती हूं,खुदमे तब तब
एक हारा हुआ इंसान
पाती हूं खुद में...!"
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मुझे किसी से नफरत करने...
की कोई जरूरत नहीं है
क्योंकि......
दुनिया मेरी मोहब्बत से हारी हुई है..!!!
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फिर वही अपना प्यारा-सा
बचपना याद आया ,
जब झूला और बारिश ने
वो बचपन दोहराया ।
बचपन के गलियारों में तो
सभी लगते थे अपने ,
तब पता न था ये रिश्तें
सीमित होते हैं इतने ।
बड़े होते-होते सिमट जाएगी
ख्वाबों की दुनिया ,
सिर्फ अपना परिवार ही
बन जाएगी अपनी दुनिया ।
वो बचपन भी क्या बचपन हुए
जब दिल पर कोई बात न लगती ,
बड़े हुए तो छोटी से छोटी बातें भी
सीधे दिल पर जा चुभती ।।-
हुनर था हर हाल मे हँसने का मेरे पास,
आज रोने लगा हुँ कुछ तो बात होंगी।।-
वो जो थे क़भी मेरे दर्द के हमदम,
अब मेरे दर्द से परे हो गये,
वो जो थे बचपन के यार,
ज़िन्दगी की कश्मकश में कही जुदा हो गये,
था वो गुज़रा जमाना ही बेहतर,
क्यों ख़ामख़ा हम वक़्त के साथ बड़े हो गये।।-
अरे........
तुम्हें क्या पता क्या खोया हैं मैंने,
जो मैं यूँ खोया खोया रहता हूँ।।-