" चातक और मैं "
भाग - १
( सम्पूर्ण रचना अनुशीर्षक में पढें )-
10 APR 2021 AT 17:53
कभी देखा है तुमने
उस चातक को
समझा है उसके प्रेम को
कितना कठिन है न
सावन में भी प्यासा रह जाना
पीहू पीहू की रट करना
एक बूंद स्वाति की
पाने के खातिर
जीवन तक को दांव
पर धर देना
फिर वो नक्षत्र की मर्ज़ी
स्वाति की बूंद दे या न दे
तुम भी नक्षत्र
की तरह ही तो हो
तुम्हारी मर्ज़ी मुझे
प्रेम दो या न दो।-