मैं कैसे दिलवाऊं उसे कुछ भी,
मेरा सारा असर उसी का है !
आज जो मेरा सफर दिखता है तुम्हें ,
उन रास्तों पर असर उसी का है!
मैं आज भी नई चीजों से खुश नहीं होता,
मेरा पुराना स्वेटर आज भी उसी का है !
मेरी गलियां मेरे वालिद सब रूठे है मुझसे
वो बस इक कदम भर रख दे शहर में
"आज भी सारा शहर उसी का है"-
अस्बानियत इतनी कि
मेरा छुआ सूट ओ दुपट्टा;
आज तक जेहन में नही उतारा ,
खब्त इतनी कि
मेरा छुआ कलावा ;
आज तक हाथ से नहीं उतारा !-
वो जिस तरह से मुझे याद करता है ,
ना जाने कितने सवाल करता है
मेरे जाने पर मेरे निशां पे हांथ रखकर ,
ना जाने वो कैसे कमाल करता है
जख्म, जान ,याद और पाज़ेब ,
कितना कुछ है पार उतरने को
फिर भी बहती कश्ती को छोड़ कर,
वो मेरी नजरों से दरिया पार करता है !-
मैं तुमसे इसलिए प्रेम नहीं करता
कि तुम प्रेम करने योग्य हो
बल्कि मैं तुमसे इसलिए प्रेम करता हूं
क्यों कि ' प्रेम तुम्हारे योग्य हैं '
मैं तुम्हारे लिये इसलिए समर्पित नहीं हूं
कि तुम समर्पण योग्य हो
बल्कि इसलिए समर्पित हूं
क्यों कि मेरा तुम्हारे प्रति समर्पण
समर्पित होने की व्याख्या को सार्थक करता है
और अंत में बस इतना कि
मैं स्वयं तुम्हारे योग्य नहीं हूं
बस हर बीते दिन के साथ
तुम्हारा प्रेम मुझे तराश कर
तुम्हारे योग्य बना रहा है!-
तूने अब तक जो भी लिक्खा
उम्दा से भी उम्दा लिक्खा
तेरे लिक्खे पर शक किसको है
तेरे जैसा रब ने लिक्खा
तेरे लिक्खे सारे किस्से
सारी बाते बुनियादी थीं
हर लिक्खे में मय सा कश
ओ शीरी जैसी फनकारी थी
फिर तूने कुछ ऐसा लिक्खा
जिस पर सबको हैरानी है
तूने अपने इक मतले में
मुझको बेहतर इंसा लिक्खा !-
उसने इसीलिए और अपना नंबर नहीं बदला ,
कि क्या करेंगी वो, अगर कभी उसका मन बदला !
मैने इसीलिए और कभी उसे फोन नहीं किया ,
कि क्या करूंगा मैं ; अगर उसका मन बदला !-
मैं सफर में था , तूने दर दिया
बिखरा था जब, तूने घर दिया
रोया जो था गर मैं कभी ,
तूने सर लिया ओ आंचल दिया !
मैं चला जो था लम्बा सफर ,
वो छाले तेरे पाव में थे ;
ओ गिरा जो था गर मैं कभी
तो आंसू तेरे आंखों में थे !
फिर एक रोज कुछ यूं हुआ ,
मैं ना रुक सका ,मैं ना मुड़ सका
तुझे छोड़कर बस इक सफर में
मैं चलता गया, बढ़ता गया...!
पर जब मैं सफर में था कभी
तूने दर दिया तूने घर दिया .....!-
तुझे आज फिर कुछ गुन गुनाया है,
तेरा नाम फिर दोस्तों को सुनाया है;
तुम आकर देखो मेरे घर के चरागो को ,
मैंने परिंदों को शमा बुझने पर बुलाया है !-
जमाना चाहता है हर बात पर सच बोलूं मैं
सो इरादतन अक्सर ख़ामोश रहता हूं !
तुम मेरे झूठ पर भी खुश हो जाती हो
मसलन हर बात तुमसे सच कहता हूं !-
तुझे तेरा काम तबाह कर देगा
मुझे तेरी याद ,
मुझे तेरे साथ का इल्म नहीं
तुझे मेरी बात !-