तूने अब तक जो भी लिक्खा
उम्दा से भी उम्दा लिक्खा
तेरे लिक्खे पर शक किसको है
तेरे जैसा रब ने लिक्खा
तेरे लिक्खे सारे किस्से
सारी बाते बुनियादी थीं
हर लिक्खे में मय सा कश
ओ शीरी जैसी फनकारी थी
फिर तूने कुछ ऐसा लिक्खा
जिस पर सबको हैरानी है
तूने अपने इक मतले में
मुझको बेहतर इंसा लिक्खा !-
उसने इसीलिए और अपना नंबर नहीं बदला ,
कि क्या करेंगी वो, अगर कभी उसका मन बदला !
मैने इसीलिए और कभी उसे फोन नहीं किया ,
कि क्या करूंगा मैं ; अगर उसका मन बदला !-
मैं सफर में था , तूने दर दिया
बिखरा था जब, तूने घर दिया
रोया जो था गर मैं कभी ,
तूने सर लिया ओ आंचल दिया !
मैं चला जो था लम्बा सफर ,
वो छाले तेरे पाव में थे ;
ओ गिरा जो था गर मैं कभी
तो आंसू तेरे आंखों में थे !
फिर एक रोज कुछ यूं हुआ ,
मैं ना रुक सका ,मैं ना मुड़ सका
तुझे छोड़कर बस इक सफर में
मैं चलता गया, बढ़ता गया...!
पर जब मैं सफर में था कभी
तूने दर दिया तूने घर दिया .....!-
तुझे आज फिर कुछ गुन गुनाया है,
तेरा नाम फिर दोस्तों को सुनाया है;
तुम आकर देखो मेरे घर के चरागो को ,
मैंने परिंदों को शमा बुझने पर बुलाया है !-
जमाना चाहता है हर बात पर सच बोलूं मैं
सो इरादतन अक्सर ख़ामोश रहता हूं !
तुम मेरे झूठ पर भी खुश हो जाती हो
मसलन हर बात तुमसे सच कहता हूं !-
तुझे तेरा काम तबाह कर देगा
मुझे तेरी याद ,
मुझे तेरे साथ का इल्म नहीं
तुझे मेरी बात !-
अमूमन मैं अपने ख्वाब
अपनी औकात में देखता हूं;
पर ना जानें क्यों ,
तुम्हे अपने साथ देखता हूं !
देखने को मैं भी देखूं
तेरे गाल, आँख, होंठ ओ चेहरा ;
पर ना जानें क्यों ,
मैं तेरे हाथ देखता हूं !
मैं सो कर उठू
तो देखने को पड़ा है सारा शहर
पर ना जानें क्यों
मैं चढ़े दिन में तेरे ख्वाब देखता हूं-
तुझे दूर से देखू
तो चैन पाता हूं ;
तू पास आ जाए
तो बेचैन हो जाता हूं !
तुझे छूने की ख्वाइश से
मेरी धड़कन बढ़ती है ;
तुझे सच मे छू कर के
मैं जिन्दा हो जाता हूं !-
बेशक मुझे मालूम है
मेरे लड़कपन के सारे घाव
मेरे लगाव के है !
मसअला ये नही है
कि भरी जवानी में भी घाव नहीं जा रहा ,
मसअला अब भी ये है
कि मेरा लगाव नहीं जा रहा !
मैं निपट अकेला सह लूंगा ये सारे दर्द
पर न जाने क्यों ये तिनका
हर बार तेरी आंखों में जा रहा !-
अंतिम समय में ,
खत्म होते कलयुग को
उजड़ती नदियो , उखड़ते पहाड़ों को
झुलसते, सिमटते जिस्मों को
खंडहर होते मंदिर ओ मस्जिदों को
फटते बदलो को
ढहेते संसद को , हुक्मरानों को
ओ इन्सानी फरिश्तो को
सुकून से
जमीजोंद होने के लिए ;
पढ़नी पढ़ेगी
तुम्हारी इबादत मे कही बातें
तुम्हारे लिए लिखें हुए मेरे पत्र
और मोक्ष के लिए रखना होगा
अपना मस्तक
तुम्हारे अब तक
गिरे हुए आंसुओ की मिट्टी पर !
ओ मैं ये सब करूगा!-