तू अपना ग़म रख दे मेरी हथेली पर
मैं बाँध के मुट्ठी जेब में रख लूँगा-
अकेली नहीं हूँ ज़िंदगी में,
कई ज़ख़्म, कई दर्द, कई ग़म साथ हैं।-
मेरे हाथ में तेरा हाथ रहे,
फ़िर चाहे ज़माना छूट जाए कोई ग़म नहीं।
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सारी खुशियां मिला के देखी,
तुझसे बिछड़ने का ग़म ज़्यादा निकला।-
हर किसी को हर किसी का ग़म कहाँ
हर किसी के दिल में बसते हम कहाँ
रह सको तो रह ही लेना साथ तुम
इश्क़ में अब मुश्किलें ही कम कहाँ
इक वफ़ा के वास्ते हैं सब इधर
पर मोहब्बत में अभी वो दम कहाँ
जब ख़ुशी हो पास तो सब पास हैं
रोते-रोते आँख बहना नम कहाँ
कौन 'आरिफ़' से करेगा इश्क़ अब
हो सके इसका वो अब हमदम कहाँ-
ज़ुल्म ही ज़ुल्म हैं यहाँ अमान कुछ नहीं
जी हुज़ूर के बिना अब इन्सान कुछ नहीं
आब-ए-रवां सी ज़िन्दगी बह रही है अब
ग़मों के तूफ़ान से बचा सामान कुछ नहीं-
हां! मैं कम लिखता हूं ।
गम लिखता हूं ।
मेरे हम सनम लिखता हूं ।
हां! वो छोड़ कर चली गई और अब
मैं अपने वास्ते कफ़न लिखता हूं।-
मेरी नस-नस के कबसे हो गये उसके ग़म
आँखों से ओझल जबसे हो गये उसके ग़म
ज़ख्मों को कुरेदना शुरू कर दिया लोगों ने
अब और भी नासूर तबसे हो गये उसके ग़म
उसकी ज़िन्दगी को मौत बनाकर ही छोड़ा
इतने मजबूर अब कैसे हो गये उसके ग़म
ठोकर लगती उसको फ़िर उठ ही जाता था
अलाहिदा क्यों अब सबसे हो गये उसके ग़म
उसको हर मुश़्किल में नीचे गिराया लोगों ने
उठने पर मजबूर फ़िरसे हो गये उसके ग़म
वो मेरी खुश़ी में शामिल है मुस्कान की तरह
उसको देखकर मेरे अब से हो गये उसके ग़म
कौन सदा सुनेगा इन लोगों से "आरिफ़" की
उसकी आँखों से बरसे और खो गये उसके ग़म
मन करता है "कोरे काग़ज़" पर लिख दूँ इनको
पर अल्फाज़ों को तरसे और सो गये उसके ग़म-