ये जो आधी रात के साये में
शब्दों के कोयलों पर
भावनाओं की आंच लगाकर
कल्पनाओं का चूल्हा जलाता है
और फिर मन के पतीले में
अभिव्यक्ति का छोंक लगाकर
परोस देता है कविता की दाल....
.........कवि जैसा रसोइया भला कौन होगा?
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प्रेम का अस्तित्व...उदभव से पराकाष्ठा तक
एक परमाणु की लहर, एक अणु का चिंतन,
एक त्रसरेणु की सोच, एक त्रुटि का मनन,
एक प्राण का विचार, एक वेध का स्पंदन,
एक रेणु में होता तय, एक निमेष का स्वप्न,
एक पल की इच्छा और एक विपल नमन,
एक क्षण तैयार हृदय, एक सही अंतर्मन
एक प्राण स्व स्वीकृत, एक काष्ठा मनभावन,
एक दंड स-सम्मान, एक लघु प्रणय वचन,
एक नाड़ी पक्का इरादा, एक मुहूर्त चलन,
एक प्रहर का इंतजार, एक घटी का शोधन,
एक अहरोत्र का संकेत, एक पक्ष का साधन,
एक माह निहार दर्शव्य, एक ऋतु सा सावन,
एक अयन लिखा पत्र, एक वर्ष मिले नयन,
एक अब्द साक्षात, एक दशाब्द सह गगन,
एक शताब्द निश्चय, एक दिव्य वर्ष मिलन,
एक महायुग का संकल्प, एक मन्वंतर रहन,
एक कल्प जन्मजन्मांतर साथ और गमन...-
कविता,
जो पलती है, आत्मा के गर्भ में,
समय लेती है अपना आकार लेने में,
कवि का कोई गूढ़ भाव डाला जाता है,
बीज रूप में, गर्भ की परिसीमाओं में,
और शब्द दर शब्द वो अगाध होती जाती है
(अनुशीर्षक में पढ़ें)
📖 कल्प (अभिजीत शर्मा) ✍️
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मुहब्बत का तो पता नहीं,
हां मगर....
तुम पर कुछ लिखते वक़्त
मेरी स्याही का रंग
ज़रा गहरा हो जाता है-
कोरा कागज़ कई राज़-ए-उल्फ़त छुपाए है...
जिन्हें पढ़ कर हम दो शब भी न सो सके.....
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बिखेर देता हूं मुहब्बत के अल्फाज़ कुछ इस तरह मैं कागज़ की जमीं पर...........
....... तेरी वफ़ा की नमी पाकर वो नज़्म बन जाया करते हैं-
उफ्फ़्फ़ ...
यूं मतलबी होना राजी है हमें..
गर लफ़्ज से ज्यादा एहसास हो...-
शोर करने वाले अगर खामोश हो जाये तो .
तो उनकी खामोशी हमें खलती है।
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मोहब्बत का पता नहीं पर,
कोई लिखे इश्क की दास्तां..
तो तुम करके दस्तख़त इसे मुकम्मल कर देना...!-