जब माँ उसे कर देगी त्याग
जात धर्म हो जाए अभाग,
जो अकुलाए उस कर्ण को
उसके सीने स्वर्ण को
न मिले आदर न वास,
कर्ण किससे रखे आस?
सूत पुत्र होने पर जो
वो हास्य, घृणा का पात्र हो
तो दुर्योधन आएँगे
कर्ण कौरव होते जाएंगे।
कर्ण कौरव होते जाएंगे।
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कर्ण
वो था अति बलशाली,
अति अभिमानी,
अति प्रकर्मी,
महा दानी,
परम वीर,
जान से बढ़कर थी दोस्ती,
शान से निभाही दोस्ती,
मन,कर्म से की दोस्ती,
उस वीर की दोस्ती,
मां को दिया वचन भी निभाया,
दोस्ती का धर्म भी निभाया,
हमेशा श्रापित नाम पाया,
गया जब छोड़ काया,
तब पता आया,
एक भाई गया दुनियां को छोड़ ।।।-
🙏🙏🙏राधे कर्ण🙏🙏🙏
तीनो लोक के भार वाले रथ को हिला गया,
वो कर्ण था पराक्रम दिखा गया,
अकेले ने पूरे पड़ाव को सेना सहित धूल चटा गया,
वो कर्ण का सोर्ये पठाका लेहरा गया,
पूरे पांच पड़ाव को अकेला ही हरा गया,
वो राधे कर्ण था बल दिखा गया,
यू तो अनेक योद्धा (पड़ाव) को जीवन उनका लोटा गया,
मगर अपनी बारी में निहत्था ही सर कटा गया,
वो कर्ण था विरो की बाती अपना कर्म कर के चला गया ।।।-
कर्ण
दान में मागने आया जब इन्द्र छल के कवच-कुंडल के रूप में प्राण था,
बिना कुछ सोचे दिया उसने इन्द्र को दिया दान था,
ऐसे वो सूर्य अंश बना महान था,
रण में युद्ध करने जब सब त्याग गया था,
तो देखा अर्जुन की रक्षा के लिए सामने खुद भगवान था,
अर्जुन के रथ पर बैठा अंजलि का लाल था,
वैसे तो कर्ण शक्तिमान था,
मगर सामने खुदा को देख रखा उनका मान था,
कुंती मां को दिया कर्ण का वचन पांडवो के साथ था,
नहीं तो कब का कर्ण ने किया समाप्त वो रण था,
कोरवों के पक्ष में एक वहीं अंतिम चरण में सबसे बलवान था,
भीम जैसे योद्धा को दिया कर्ण ने दिया जीवन दान था,
वासुदेव और अंजलि का लाल अर्जुन के रथ पर सारे जगत के साथ था,
तभी तो अर्जुन को अभिमान था,
वरना कर्ण के सामने कहा अर्जुन में इतना दम था,
अपने रथ का पहिया निकालने बैठा जब कर्ण था,
तभी अर्जुन में दम था,
नहीं तो कर्ण कहा किसी के कम था।।
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कर्ण
जब तक है साथ,
दुर्योधन की है आस,
मित्र कर्ण है अभी पास,
तो क्यों गबराऊ मैं नाथ,
करेगा कर्ण शत्रु का नाश,
जब तक मित्र कर्ण तेरा है हाथ,
नहीं मरूंगा मैं पड़ावों के हाथ,
जो कुछ हो गया तेरे को यार,
सर झुका कर तुझे नमन करेगा ये संसार,
तेरे जाते ही आऊंगा मैं भी तेरे पास,
जो तू नहीं तो क्या करूंगा मैं राज,
न जात देखी मैंने,
न देखा धर्म,
ए मित्र कर्ण,
साथ है वासुदेव तो है अर्जुन,
नहीं तो अकेला मेरा मित्र मिथुंजय राधे कर्ण।।।।।-
रश्मिरथी से प्रेरित
यह कविता महाभारत का एक छोटा सा अंश है
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कर्ण😢
मां थी मेरी मगर कभी मिली नहीं
भाई 5 थे मेरे मगर कभी मिले नहीं
पिता थे मेरे मगर कभी वो मिले नहीं
सखा श्याम थे मेरे मगर कभी साथ दिया नहीं
गुरु दूर्ण थे मेरे मगर कभी शिक्षा दिए नहीं
राज परिवार का हक था मगर कभी मिला नहीं
गुरु पशुराम थे मगर उनके जैसा अन्याय कभी किसी ने किया नहीं
देने के बाद छीन ली ऐसे गुरु पशुराम दूसरे मिले नहीं
नीची जाति समझ कर कभी सही सम्मान किसी से मिला नहीं
दुर्योधन मित्र बस एक साथ था दूसरा कोई खास अपना हुआ नहीं
हमेशा ही दिया सब को कभी कुछ मांगा नहीं
फिर भी कुछ अच्छा कभी हुआ नहीं
इन्द्र को भी भीख दी और उसके भी कुछ मांगा नहीं
हमेशा गलत हुआ कभी सही किसी से हुआ नहीं
मेरी सच्चाई किसी ने कभी कही नहीं
युद्ध में जाते समय सखा श्याम ने सच्चाई बताई ताकि मै लडू नहीं
फिर माता कुंती ने कहा मेरे पाचो पांडव को मारो नहीं
भीष्म ने पहले 14 दिन मुझे लड़ने दिया नहीं
आशीर्वाद किसी ने मुझे जीवित रहने का दिया नहीं
लड़ाई में सखा श्याम ने मुझे पहले अर्जुन से लड़ने दिया नहीं
कमजोर पड़ने पर सखा श्याम ने मुझे अर्जुन को रोका नहीं
साथ तो सारी कायनात थी अर्जुन के मगर मै डरा नहीं
लड़ा मगर जब सामने भगवान कृष्णा और हनुमान से मै जीत सकता नहीं
रक्षा उसकी करी सबने मेरा को कभी कोई हुआ नहीं
मेरी तो निहत्था की अस्त्र शस्त्र के साथ तो किसी में साहस था नहीं
हमेशा ही गलत हुआ सही किसी से हुआ नहीं
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🙏🙏🙏राधे कर्ण 🙏🙏🙏
अनेकों योद्धा में एक वहीं तो महान था,
दान देना उसका साविमान था,
वो कर्ण महान था,
क्षत्रियों की बाती ही वो महान था,
वहां पर एक वहीं कर्म के बलवान था,
इंद्र को दान देने वाला वो कर्ण महान था,
सब विरों में एक वहीं तो शक्तिमान था,
कुंती का वो अंश मन से धनवान था,
दुर्योधन मित्र वो कर्ण महान था,
पड़ाव को जीवन देनेवाला वो वहां अपनों से अंजान था,
किसी भी वस्तु का उसे न अभिमान था,
वो कुंती पुत्र महान था,
किया जिसने अंगदान था,
वो सूर्य का दीपक कृतिमान था
वो राधे कर्ण महान था।।।।-