हमे उजाड़ा इस तरह,
की कागज तुम्हारा विकास कह गया,
बेघर तो हुए हम,
लेकिन सरकार तुम्हारी थी,
सीधा- साधा हिसाब हो गया,-
उठी अगर उंगलियां आदिवासियों पर,
तो इतिहास दोबारा दोहराया जाएगा,
तुम बंदूके तलवारें लेकर आओगे,
ओर यह आदिवासी तीर कमानो से ही तुम पर भारी पड़ जायेगा,
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ये फिल्में भी मुझे बदनाम सी करती है,
मेने कई अपने युवाओ को देखा है,
आदिवासी होने पर भी,
अपनी पहचान को छुपाते - छुपाते,
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आज भी में पगडंडिया के सहारे चल रहा हूँ,
कुछ ट्रेक्टरो के गुजरने से बे पगडंडिया चोड़ी हुई है,
लेकिन विकास की आज भी में तलाश कर रहा हूँ,
नदियों और जंगलो के साथ थोड़ा मुस्कुराना सीखा हूँ,
वरना ये सरकारे तो मुझे जंगलो से खदेड़ मेरा कत्ल करना चाहती है,
आदिवासी-
हम में ओर तुम मे फर्क इतना है,
की तुम जंगल में शिकार करने आते हो,
ओर हम उन्ही जंगलो को बचाते बचाते मर जाते है,-
मेरे सुंदर फले फूलते गाँव,को लौटाएगा कोन,
घने जंगलों को काटकर,
बड़े बड़े कारखानो-उधोगो को बनाया गया,
मेरे घरों को उजाड़कर,
पैसों से विस्थापन कराया गया,
जीवित भाषा मेरी संस्कृति को,
विलुप्ति की कगार पर खड़ा कर दिया गया,
हँसते खेलते मेरे परिवार को,
शोषित होती राह पर बिखेर दिया,गया
मेरी हर प्रकृतिक व्यवस्था को,
तहस महस सा कर दिया गया,
मेरे सुंदर फले फूलते गाँव,को लौटाएगा कोन,
बड़े बड़े बांधो को बनाकर लाखो आदिवासियों को,
सड़को पर मजबुर कर दिया गया,
अपने स्वार्थ के चक्कर मे,
हमे जंगलो से खदेड़ दिया गया,
हमारे गांवो को राष्ट्रीय उधान,
अभ्यारणों में तब्दील करके,
आवाज उठाते निर्दोष आदिवासियों,को
जूठी धाराएं लगाकर जेलों में कौड़ दिया गया,
मेरे सुंदर फले फूलते गाँव,को लौटाएगा कोन,
नन्हे मुंन्हे नॉनिहालो का,हंसता खेलता बचपन,
जूठे विस्थापन में छीन लिया गया,
मेरे पूर्वजो के द्वारा दिये हुए,विश्वास को
सफेद कागज बताकर मुझसे छीन लिया गया,
हर पन्ति में,में अपना दर्द बता सकता हूँ, लेकिन,
मेरे सुंदर फले फूलते गाँव,को लौटाएगा कोन,-
शर्म नही है गर्व है मुझे,
पीला गमछा धारण कर,
शर्माया बे करते है,
जिन्हें शक है खुद के आदिवासी होने पर,
जय आदिवासी-
कोई सी भी फैक्ट्रियां खड़ी करना है तो आदिवासियों की जमीने दिखती है,
सरकारे चाहती क्या है,उधोगो के नाम पर हमे दफन करना,
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मैं आजाद हूँ...
नीमच में जो आदिवासी की,
ह्त्या हुई है,
उसे देखकर आपको लगता है,
क्या में आजाद हूँ,
नेमावर की घटना,
जिमसें मानवता शर्मसार हुई है,
उसे देखकर क्या आपको लगता है,
कि मैं आजाद हूं,
लाखों आदिवासियों को जंगलों से बेदखल कर दिया गया
आज सड़कों पर उनका अस्तित्व खतरे में है,
क्या उन्हें देखकर आपको लगता है,
कि मैं आजाद हूं,
अपने हक के लिए,
सड़को पर उतरे,
कई आदिवासियों को झूठी धाराएं लगाकर,
जेलों में कोड़ दिया गया,
इन सब को देखकर क्या आपको लगता है ,
कि मैं आजाद हूं,-
हाँ, तो मुद्दा ये था की माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश सुनाया है जिसके तहत दस लाख से ज्यादा आदिवासी परिवारों को अपना घर छोड़ना पडेगा, जी हाँ ऐसा पहली बार नही हुआ है कभी बाँध तो कभी ओधोगिकरण के नाम पर आदिवासियों को विस्थापित करने का काम इस देश में आजादी के बाद से समय -2 पर होता रहा है ओर इनसे प्रभावित लोग पुनर्वास के अभाव में महानगरों मे दर-दर भटकते हुए झुग्गी झोपड़ियो में बहुत ही कष्टपूर्ण जीवन जीने को विवश है । आज के परिवेश के अनुसार सरकार का उद्देश्य होना चाहिए था, पेड़ लगाओ, पर्यावरण बचाओ आदिवासीयो को उनकी जमीनो पर अधिकार दो , लेकिन आज सरकार का ध्येय है मूर्ति बनाओ , उधोग लगाओ और आदिवासियों , जंगलो को उजाडो अगर विरोध करे तो नक्सली बताकर गोली मारो । मुझे तो आखिर समझ ही नहीं आ रहा है कि ये सरकारे हम आदिवासीयो से चाहती क्या है? कई लोग सोच रहे होगे कि ये मामला आदिवासी समुदाय का है तो वो ही इसके लिए सरकार से लड़े उनसे मैरा यह कहना है कि यहाँ सिर्फ आदिवासीयो का उजडना भर नही होगा उजडेगे वो जंगल भी जिनको इन आदिवासीयो ने अपनेबच्चों की भांति पाला था । हाँ अनाथ हो जायेंगे वो करोडों पशु भी , ओर उजड़ जायेगा बसेरा उन पँछीयो का भी जो सुबह के कलरवसे इस देश की वन -सम्पदा का बखान करते थे । सनद रहे इससे पहले विश्वविद्यालयों में नई रोस्टर प्रणाली लाकर उनके प्रतिनिधित्व को समाप्त कर दिया गया था
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