मैं अब भगवान से कुछ मांगना नहीं चाहता ऐसा नहीं है कि मैरी ज़रूरतें खत्म हो गई है, मगर मुझे अहसास है उसने मुझे उम्मीद से ज़्यादा दिया है। अब समय अपने कर्तव्य का पालन करने और दूसरों के हित में काम करने का है।
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बढ़ते रहो उन्नति के पथ पर
करो सफलता की सीढ़ी पार
ना आए कोई विध्न बाधा
हो आपका हर स्वप्न साकार
जब कभी देखोगे मुड़कर
पल मिलेंगे हजारों यादगार
शुभकामनाओं के साथ यही कहेंगे
कि खुलते रहे आपके लिए प्रगति के द्वार
- SUNITA VERMA-
मुझे याद तुम्हारी आतीं हैं रह रहकर
पुरानी बातों को बताती है कह कहकर
दिल ये मैरा धड़कता है रूक रूककर
तेरी गलियों में देखता हूं , मुड़ मुड़कर
तेरी तस्वीर देखता हूं रात में उठ उठकर
यार मैं प्रेम तुमसे करता हूं छुप छुपकर-
अपने कर्तव्य पथ पर चलकर
निरंतरता का परिचय देता जा
कंकड़, पत्थर व कांटे हैं हज़ार
बचाकर खुद को निकलता जा
नदियों का पावन जल बनकर
अविरल दरिया सा बहता जा
राह में है विपदाओं का अंबार
अपनी मति से तू संभलता जा
लेकर अपनी क्षमताओं का सागर
राजेश तू अपनी गति से चलता जा
- राजेश नारेड़ा
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पद से प्राप्त सम्मान अस्थाई है, व्यवहार से अर्जित सम्मान स्थायी होता है।
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सफ़ेदपोश और जनेऊ के गठबंधन से हारा हूं
मैं मरा नहीं अपनी मर्ज़ी से सिस्टम का मारा हूं
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हाँ, तो मुद्दा ये था की माननीय सुप्रीम कोर्ट ने एक आदेश सुनाया है जिसके तहत दस लाख से ज्यादा आदिवासी परिवारों को अपना घर छोड़ना पडेगा, जी हाँ ऐसा पहली बार नही हुआ है कभी बाँध तो कभी ओधोगिकरण के नाम पर आदिवासियों को विस्थापित करने का काम इस देश में आजादी के बाद से समय -2 पर होता रहा है ओर इनसे प्रभावित लोग पुनर्वास के अभाव में महानगरों मे दर-दर भटकते हुए झुग्गी झोपड़ियो में बहुत ही कष्टपूर्ण जीवन जीने को विवश है । आज के परिवेश के अनुसार सरकार का उद्देश्य होना चाहिए था, पेड़ लगाओ, पर्यावरण बचाओ आदिवासीयो को उनकी जमीनो पर अधिकार दो , लेकिन आज सरकार का ध्येय है मूर्ति बनाओ , उधोग लगाओ और आदिवासियों , जंगलो को उजाडो अगर विरोध करे तो नक्सली बताकर गोली मारो । मुझे तो आखिर समझ ही नहीं आ रहा है कि ये सरकारे हम आदिवासीयो से चाहती क्या है? कई लोग सोच रहे होगे कि ये मामला आदिवासी समुदाय का है तो वो ही इसके लिए सरकार से लड़े उनसे मैरा यह कहना है कि यहाँ सिर्फ आदिवासीयो का उजडना भर नही होगा उजडेगे वो जंगल भी जिनको इन आदिवासीयो ने अपनेबच्चों की भांति पाला था । हाँ अनाथ हो जायेंगे वो करोडों पशु भी , ओर उजड़ जायेगा बसेरा उन पँछीयो का भी जो सुबह के कलरवसे इस देश की वन -सम्पदा का बखान करते थे । सनद रहे इससे पहले विश्वविद्यालयों में नई रोस्टर प्रणाली लाकर उनके प्रतिनिधित्व को समाप्त कर दिया गया था
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छोड़के तुम निकलें अपना शहर
देखने को नदियां , झरने व नहर
प्रकृति में क्यों घोल रहें हो ज़हर
तुम भूल गए हो क्या दूसरी लहर
मनुष्य तू अभी अपने घर में ही ठहर
नहीं फिर भुगतना कोरोना का कहर
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