💞अभी सुन रही गैरों की, एक दौर
आएगा जब मैं अपनी कहानी लिखूँगी..
कैसे जीए हैं हरपल मैंने वो हकीकत
अपनी तहरीर की जुबानी लिखूँगी..
कैसे बीता बचपन अनुशासन में
कैसे बिन बचपन जिए बड़ी हो गयी
कितनी चाहत थी शरारत करने की
जो सिमट गयी चार दीवारी में
मैं वो हर एक करस्तानी लिखूँगी..
अभी सुन रही गैरों की...|-
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इस बार दोस्ती पर...
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मैं...
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मस्त हूँ,आज़ाद हूँ
खुली वादियों में घूमता,इक आवारा पँछी हूँ
इस हँसते खेलतें मौसम में,मस्त हूँ आज़ाद हूँ
सुनें रास्तों का तेरे,मैं हमराही बेनाम हूँ
हाथ पकड़ चलने को तेरा, मस्त हूँ आज़ाद हूँ
तेरी कहानी लिख़ने को,ख़ुदसे ज़्यादा बेताब हूँ
मैं बिन स्याही का कोरा कागज़, पर मस्त हूँ आज़ाद हूँ
मुश्किल डगर में तुझें, आगे बढ़ाता हौसला हूँ
ना हिलने वाला पत्थर बनकर भी ,मस्त हूँ आज़ाद हूँ
काली रातों के अंधकार में,चाँदी सी चिंगारी हूँ
हो उजाला जब चारों ओर, तब मस्त हूँ आज़ाद हूँ
तू तू मैं मैं से बढ़कर, शाँति का आगाज़ हूँ
मैं हर द्वेष को काटने में,मस्त हूँ आज़ाद हूँ-
My new poetry
"पायल"
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आवाज़ नही निकल रही है या मूक बने हो
राजनैतिक पार्टिया तो अपना भला देखती है
इन्हें कहा कोई चीखें या दर्द सुनाई देता होगा
कुछ घटना से पहले ट्वीट करते है और कुछ बाद
प्रियंका गांधी को शायद उसके मरने का इंतज़ार होगा
बाप से भी पहले ख़बर,इस नेता को मिली
दुख जताने फ़ोन किया तो,बाप क्या बोला होगा
जब अपने कद से ऊँची बेटी को कँधे पे उठाया होगा
तब इसका दर्द उस बाप से कौन बंटवायेगा
इस बार मनीषा है,कल गीता और निर्भया थी
आगे आने वाली सीता को तब कौन बचाएगा
इतने बकवास बिल पास करवाते हो संसद से
एन्टी रैप बिल पास करवालोगे तो नेताओं तुम्हारा क्या बिगड़ जाएगा
ये शोर फिर से उठा है ,पर ज्यादा तेज ना चिल्लाओं
कही अर्नब ने सुन लिया तो बुरा मान जाएगा
और ये कोई मुद्दा थोड़े ही है दिखाने का
दीपिका रिया और सुशांत दिखाने से ज्यादा थोड़े ही कमायेगा
कँगना के घर को तोड़ा,देशभक्ति जाग गयी
करणी सेना और बजरंग दल को अब ये खबर कौन सुनाएगा
ये इतिहास में था उनके,या देखनें की चाह नही
अगर है सच्चा रक्त इनका तो इसके लिए आवाज़ जरूर उठाएगा-
सुना है जो मांगते है ख़ुदा से भरपूर देता है
ना गैरों को कम ना अपनों को ज्यादा देता है
फ़िर क्यों हमें अब तक खुशियाँ नसीब है
ज़ब हर बार ख़ुदा से सनम का गम मांगा है-