मेरी वजह से आई तुम पर वो मुसीबत का पहाड़
आज भी याद है मुझे.........
जब अपनो ने साथ छोड़ दिया था उस अंधेरे में
जब रोशनी की किरण तक नही दिखाई दे रही थी...
ना उम्मीद से हो गए थे हम उस तूफान
ने जब अलग किआ हमें......
एक बार दूर जाने से पहले मिलना तो था....
अपने से ज्यादा तुम्हारी फिक्र है मुझे इंतज़ार
करो खुद की इजाजत का....
हमारा मिलन संयोग नही बल्कि खुदा की मर्जी
है जो लोग हमें दूर करना चाहते है उन्हें शायद ये नही पता
ज़िन्दगी जब किसी चीज़ का अंत करती
है तो आरम्भ भी वहीं से करती है.
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तितली सा सुंदर जीवन
पऱ सब हैं चार दिनों के रंग,
ख़ुश्बू सी हैं खवाईशें
औऱ कांटे हैं.. फूलों के संग,
ख़िलने में महीने बीत गये
ख़िल के जिये.. दिन चार,
साथ में सुन्दर थी पंखुड़ियां
बिखरीं तो लगीं.. बेकार,
माली बैठा रह गया
कर नां पाया चयन,
उम्र गुजारी जिस बगिया में
उसे ही उजड़ते देखें.. नयन,
ख़ाली हाथ में ले कटोरा
दर-दर.. भिक्षु मांगे भीख,
कितना चाहिये जीने को
देने बाले.. कुछ तो सीख..!-
अंत.. नज़र है ज़िन्दगी का
फ़िर भी यह बेख़बर सा सफ़र है ज़िन्दगी का,
यूँ तो सभी.. अपने हैं
पऱ यहाँ कौन मग़र है ज़िन्दगी का,
लौटने की नहीं कोई गुंजाईश
यह रास्ता.. ही इसकदर है ज़िन्दगी का,
सब्र कफ़न में है लिपटी
फ़िर भी.. हर लम्हा बेसब्र है ज़िन्दगी का,
मेरा पंछियों सा है.. बसेरा
यह कैसा.. शज़र है ज़िन्दगी का,
मैं कितना मोहः कर बैठा हूँ
जाने यह क्या असर है ज़िन्दगी का,
उस पार जाने की.. सोचूँ
पऱ बहुत तेज़ भँवर है ज़िन्दगी का,
मरघट तक ही कदमों तले डगर है
दिल.. उससे आगे कहाँ सफ़र है ज़िन्दगी का..!-
निराश क्यूँ है बेवजह बंदे.. हर अंधेरे के बाद उजाला है
यह दुःख-सूख का पहिया तो.. आख़िर तक चलने बाला है,
डर है क्या छूट जाने का.. क्या पाने का स्नेह पाला है
अब शह मात तो होगी ही.. जब सिक्का हवा में उछाला है,
गुमां ना कर तू के है सोने की देह.. यह माटी की माला है
मूर्ख उतना ही खो देगा... जितना इसे संभाला है,
हैं मिथ्या प्रेम के सब बंधन.. मोहः मकड़ी का जाला है
यह नशा धीरे धीरे उतरेगा.. जीवन मदिरा का प्याला है,
आईने में चेहरा देख वो कहता है
उफ़्फ़... यह बड़ती उम्र ने मुझे कितना बदल डाला है
पऱ मैं बूढ़ा हूँ तो क्या हुआ...
मेरी परछाई का रंग तो अभी भी काला है!!-
यूँ तो आसान नहीं है उसे खो देना... जिसे मुश्किल से तुम पाने लगो
पऱ यह जीवन है इसमें जो मिला...
समझ ख़ुदा का रहम... बस अपनाने लगो,
स्वीकार करो.. आगे बड़ो.. क्या लगता है ख़ुश रहने को..
नहीं होता है अग़र जैसा चाहते हो तो...
जो हो रहा है... बस उसे चाहने लगो,
अब बहुत जलेगा सुबह का सूरज दिनभर... फ़िर शाम ढले क्यूँ उदासी है
नए सिरे से फ़िर उदय होना है... यह सोचो जब डूब जाने लगो,
एक ही अंत है सबके इस जीवन पथ का ...
सफ़र भिन्न सही मुसाफिरों के
सुख में हँसे तो क्या हँसे... बात तब है जब दुःख में तुम मुस्कुराने लगो!!-
बस यूँ ही.. क़भी क़भी....
"मैं" "मुझे" यूँ ही तोलता हूँ!!
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सूखे दरख्तों को अक्सर... परिंदे बिसर जाते हैं
पऱ मौसम बदलता है... शाख़ पे अंकुर फ़िर आते हैं,
यह जीवन है तारों सा... बुझता चमकता है
कौन कहता है के... वो खूबसूरत नहीं होते... जो बिख़र जाते हैं,
मैंने सुना है बड़े लोगों को अपने बारे में छोटी बात करते
अच्छा है... के मेरे निकृष्ट चेहरे से आईने निखर जाते हैं,
जनाब... अपनी दौलत-शोहरत पर इतना भी मत इतराओ..
सारे अंक रह जायेंगे... अंततः बस साथ सिफर जाते हैं,
पत्ते कितने भी ऊँचे टहनी पे क्यूँ ना लगे हों
पतझड़ आती है तो... अपने आप ही गिर जाते हैं!!-
जो सबकुछ थे पाने वाले... वो कुछ भी खोने वाले नहीं रहे,
बालों पे चाँदी छा गई... दिल अब दिन वो सोनें वाले नहीं रहे,
गुल्लक में ही रह गए... वो पाँच दस पच्चीस पचास के सिक्के
उफ़्फ़... बचपन की गलियों में... अब वो खिलौनें वाले नहीं रहे,
हर हार ना जाने क्यूँ... अब हमें हँस के स्वीकार है...
अब हम वो पहले से... सिसक-सिसक कर रोने वाले नहीं रहे,
समय को मोड़ने की बेकार कोशिश करता है आईना...
पहले से हूबहू... अब हम होने वाले नहीं रहे..!!
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बन्दे, किस बात का है गुमाँ, किस बात पे गर्वित है
यहाँ जो कुछ भी प्रवर्तित है, ...वो सब तो नैसर्गिक है,
विसर्जित ही करने होंगे, प्रभु जल में प्राण प्यारे
तुझे जो कुछ भी अर्जित है, वो संग ले जाना वर्जित है..!!-
जाने यह मृत्यु क्यूँ होती है...
क्या इस सुखद जीवन का कोई दूसरा अंत नहीं हो सकता
किसी औऱ तरह से जीवन के चलचित्र पऱ पर्दा गिरता
किसी औऱ ढंग से हम सब किरदार विलुप्त होते...,
काश ईश्वर के पास कोई
औऱ तरीका होता कहानी को समाप्त करने का...
हँसी बाला... ख़ुशी ख़ुशी बाला,
है नां....!!-