अब हमारे ख़ुदा कुछ और बोलने लगे है,
अंदर ही अंदर कुछ और सोचने लगे है।
हद है! वो हमे बेवकूफ़ समझने लगे है,
वो अपने बनकर हमें ही छुरा घोपने लगे है।।
उनकी सोच हम भी समझने लगे है,
हम भी बोलने कुछ और सोचने कुछ और लगे है।
ऐसे थोड़े ही हम तंत्र कहलाते है,नाम है जनता,
आलम ये है कि वो भी अब इधर उधर भटकने लगे है।।
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