हर बार सोच के जाती हूँ इस शहर से यादों, ख़ुशी, दर्द का हिसाब किताब कर के ज़िन्दगी में आगे बढ़ जाऊं हर बार ये शहर-ऐ- इलाहाबाद मुझे बाँधे रखता है , कुछ अधूरा कुछ बाक़ी रखता है !!!
कभी मैं खुद से रूबरू तो कभी खुद से ही रुसवा कभी मैं खुद को तराशता तो कभी खुद को मिटाता कभी दिल की सच्चाई खुद को बताता तो कभी दिल की आरज़ू खुद से छुपाता कभी मैं खुद से रूबरू तो कभी खुद से ही रुसवा..