फिज़ा
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फिज़ाओं में कैसा ये
महक घुल रहा है,
कुछ अधूरा होते हुए भी
सब पूरा लग रहा है|
न अतीत का अफसोस
न भविष्य का फिक्र हो रहा है,
इस पल को बस खुल कर
जीने का मन हो रहा है|
बुरी यादों को पीछे छोड़
खुशनुमा यादों का ज़हन में
आगाज़ हो रहा है,
हवाओं की तरह, आज
ये मन भी इठला रहा है|
फिज़ाओं में कैसा ये
महक घुल रहा है,
कुछ अधूरा होतें हुए भी,
सब पूरा लग रहा है|
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