कुछ तो बेहतर बन जा ऐ लफ्ज़!
क्यूं बना बैठा है तू मेरा मरज़?
तुझे पहन रखा है मैंने सदियों से यहां,
कुछ खुद से , कुछ उनके यहां,
मैं अगर बेदर्द नहीं,
तो तू सकूं क्यों नहीं?
तेरे सकूं को मैं,
किताबों में ढूंढूं यां,
खोजूं वो जहां, यहां बनती हो तेरे नासूर की दवा।
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