तेरा मेरा रिश्ता अब चुभने लगा है इस जमाने को,
अपने ही जी जान से लगे हैं, ये दूरियां बढ़ाने को।
साथ चल सको अगर तुम तो हम संभल जाएंगे,
कुछ यूँ सजायेंगे हम अपने इश्क़ के ठिकाने को।
कहाँ मांगते धन-दौलत बस खुला आसमाँ चाहिये,
दो घूँट इश्क़ ही काफी है ,पूरी ज़िंदगी बिताने को।
बहुत सी बन्दिशें हैं यहाँ बस मुट्ठी भर इश्क़ पाने को,
हर कदम पर तोड़ा जाता है ,बस यूँ ही आजमाने को।
बहुत जलना पड़ता है यहाँ हर रिश्ता यूँ निभाने को,
कहाँ आता कोई शख्श,परिंदों का इश्क़ मिलाने को।
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